माता स्व. सौ. मंगला, पिता स्व. श्रीयुत नारायण: काकडे तथा विठ्ठलभक्त: मातुल: स्व. श्रीयुत गुणवन्त: सवनकर महोदय: एतानि हरिभक्तिपाठ: अयच्छन् | शालेय जीवने संस्कृतविषयस्य अध्ययनेन देवभाषासम्बन्धाय श्रद्धा अवर्धत् |. तत्पश्च्यात जीवने संतवाङमयस्य प्रभावेन ध्यानादि योगमार्गे चित्तवृत्ती: प्रवाहमान: अभवत् | १९९९ ख्रिस्ताब्दे आगष्ट मासस्य १६ तम दिनांके (श्रावणमासस्य प्रथम सोमवासरे) भावावस्ये अकस्मात: संकृतभाषे हरिस्तुतिपर स्तोत्रम् अस्फुरत् | संस्कृत भाषयाम् एकम् वचनम् अस्ति – ' श्रद्धावांल्लभते ज्ञानम् ‘ इदम् मम जीवने खलु सार्थकम् अभवत् | इति मम विश्वासम् | अद्यपर्यंतम् संस्कृत बृहद्स्तोत्रानि, लघुस्तोत्रानि, भक्तिगीतानि, संतस्य अभंगाणाम् सन्स्कृतेन भाषांतरम् एवम् मराठी भक्तिगीतानि अपि अरचयत् | समये समये स्फुरिता: रचना: विविधे वर्तमानपत्रे अप्रसिध्यन् | २००५ ख्रिस्ताब्दे महाराष्ट्र शासनस्य 'महाकवी कालिदास - संस्कृत साधना' पुरस्कारेन गौरवान्वित: अभवत् | युष्मद् नित्याप्रति उत्तम: यश: तथा उन्नति: करोतु इदम् शुभेच्छा: || शुभम् भवतु || कल्याणमस्तु ||
हरी-भक्तीचा वारसा माझी आई स्व. सौ मंगला , माझे वडील स्व. श्री नारायण रामचन्द्र काकडे आणि माझे मामा विट्ठल भक्त स्व. संत श्री गुणवंत कृष्णराव सवनकर (मु. कुर्ली, जिल्हा यवतमाळ) यांच्या कृपाशिर्वादाने मिळाला. १६ आगस्ट १९९९ (त्या वर्षातील प्रथम श्रावण सोमवार) रोजी हरी- प्रेम भावभक्तिची उत्कट भावना एकाएकी उफाळून आली आणि त्या आनंदात संस्कुत व मराठीतून हरीस्तुतीपर प्रार्थना, स्तोत्र व गीत उत्स्फुर्तपणे प्रगट होऊ लागलीत.वेळोवेळी प्रगटलेल्या संस्कृत व मराठी स्तोत्र व गीतांचे संकलन केले आहेत. अनेक मंदिरात, धार्मिक शिबिरांत आणि संबंधितांना वाटप केलेत. त्याचप्रमाणे मान्यवर वृत्त-पत्रांतहि त्यांचे प्रकाशन केलेले आहेत. या संस्कुत सेवेबद्दल, महाराष्ट्र शासनाने नारळी (श्रावण) पोर्णिमा, शुक्रवार दिनांक १९ आगस्त २००५ रोजी शासनाच्या संस्कृत दिन समारोहा मधे ‘महाकवी कालिदास संस्कृत साधना’ पुरस्काराने मला गौरविले आहे. हरी गुणगाण हीच हरी-भक्तिची सोपी किल्ली आहे हे लक्षात ठेवून या भक्तिभाव-सुमनांचा आनंद सर्वांना मिळण्या साठी आणि आपण सर्वांना सदैव हरी सोबत ठेवून आपले जीवन कल्याणमय होईल या सद्- भावनेसह सादर करित आहे. || हरि ॐ ||
मी सौ. साक्षी राजीव देशपांडे , व्यावसायिक गायिका व संगीतकार आहे. डॉ. श्री. श्रीरामनारायण काकडे , यांच्या शब्द रचनांचा मी सध्या संगीतबद्ध करण्याकरिता अभ्यास करते आहे. ह्या कवीराजांच्या सर्व रचना वृत्तबद्ध आहेत.मराठी, हिंदी तर आहेतच पण संस्कृत रचना देखील नादमय आहेत. त्यामुळे या रचना स्वरबद्ध करण्यास अवघड जात नाहीत. कवीवर्याच्या ह्या सर्व रचना भक्तीरसाने ओथंबलेल्या आहेत.अतिशय भावपूर्ण अशा रीतीने सर्व देवतांचे सुंदर असे वर्णन त्यांनी केले आहे. मला वैयक्तिक आवडलेली रचना म्हणजे, "गोकुळीचा बाळ, गोजीरा गोपाळ", तसेच संत श्री गजानन महाराजांवरची संस्कृत मधील रचना आहे. सगळ्याच रचना अत्यंत छान झाल्या आहेत. परमेश्वराचा हा त्यांना कृपाप्रसाद आहे असे मला वाटते. हा भावसुगंध असाच कायम दरवळत राहो. ह्या रचना संगीतबद्ध करून सगळ्यांपर्यंत पोहोचाव्या आणि या भाव यज्ञात माझ्या कडून स्वरभाव-समिधा अर्पण व्हाव्या हीच सद्गुरुंच्या चरणी प्रार्थना.
शिक्षण - एम.एससी. (जीवरसायनशास्त्र) , पीएच. डी., डी. एच. बी., डी आय आर पी एम.
‘महाकवी कालिदास संस्कृत साधना’ पुरस्कार, महाराष्ट्र शासन, आगस्त २००५.
कार्य - वैद्यकिय महाविद्यालये प्राध्यापक व जीवरसायनशास्त्र विभागप्रमुख , bhaktisarita
१६ आगस्ट १९९९ (त्या वर्षातील प्रथम श्रावण सोमवार) रोजी हरी- प्रेम भावभक्तिची उत्कट भावना एकाएकी उफाळून आली आणि त्या आनंदात संस्कुत व मराठीतून हरीस्तुतीपर प्रार्थना, स्तोत्र व गीत उत्स्फुर्तपणे प्रगट होऊ लागलीत. वेळोवेळी प्रगटलेल्या संस्कृत व मराठी स्तोत्र व गीतांचे संकलन केले आहेत. अनेक मंदिरात, धार्मिक शिबिरांत आणि संबंधितांना वाटप केलेत. त्याचप्रमाणे मान्यवर वृत्त-पत्रांतहि त्यांचे प्रकाशन केलेले आहेत. या संस्कुत सेवेबद्दल, महाराष्ट्र शासनाने नारळी (श्रावण) पोर्णिमा, शुक्रवार दिनांक १९ आगस्त २००५ रोजी शासनाच्या संस्कृत दिन समारोहा मधे ‘महाकवी कालिदास संस्कृत साधना’ पुरस्काराने गौरविले आहे. bhaktisarita by shreeram kakade
संस्कृत रचित स्तोत्र संग्रह
संस्कृत रचित भक्तिगीतानि
संस्कृत अनुवादित भक्तिगीतानि
मराठी भक्तिगीत
प्लॉट नं. ४, फ्लॅट नं. १०१, वैष्णवी अपार्टमेंट, श्रीगजानन महाराज मंदिरा शेजारी,
गजानन नगर को-ऑपरेटिव सोसायटी, गजानन नगर, रिंग रोड , नागपूर, ४४००२७, महाराष्ट्र.
Mob : +91 - 9479378004
Email : shreeramkakde@rediffmail.com
ईश्वर का अस्तित्व तथा सामर्थ्य इस जहां में सिद्ध है ,
ईश्वर कहीं सदेह स्वरूपी सद्दृष्यि प्रेषित नहीं है ||१||
ईश्वर की अनुभूति, अंत:करण से मन-कल्पित है ,
ईश्वर का नाम, रूप, गुणादि, मनचाहा अभिप्रतीत है ||२||
ईश्वर को 'श्रीराम' कहो, या रहिम, वह तो अनाम है ,
ईश्वर को सुन्दर सोचो, या भयंकर, वो तो अरूप है ||३||
ईश्वर तो सब दुर्गुण तथा विकारों से बेखबर है ,
ईश्वर तो बस आनंद, प्रीति, शांति, संतुष्टी से पूर्ण है ||४||
क्रोध मोह त्याग कर, अपनाओ दया, क्षमा, शांति ,
अपने आप उभर आएगी, मन में ईश्वर की प्रचीति ||५||
ईश्वर की प्रचीति, बाह्य इन्द्रियों से निश्चित भ्रमित है ,
ईश्वर भीतर के प्रतीत मनोभावना से जुडित है ||६||
ईश्वर की भावना तो नम्रता, श्रध्दा, निष्ठा से प्रेरित है ,
ईश्वर तो सतत चिंतन से ज्ञान रूप में उदित है ||७||
ईश्वर चिंतन से मन में ज्ञानदीप ज्वलित होता है ,
ईश्वर जागृत संपूर्णता से भीतर प्रकाशित होता है ||८||
ईश्वर स्वयंभु चैतन्यमय क्रियाशील परमात्मा है ,
ईश्वर इस जहां की निर्मिती, नियंत्रण अभियंता है ||९||
सकल संचालक परमात्मा का हीं सूक्ष्मांश जीवात्मा है ,
आत्मासे जुडित मन, जीवितोंको क्रियाशीलता देता है ||१०||
मन-भावना हीं बुध्दि तथा इन्द्रियों का कर्मशासक है ,
मन हीं बुध्दि-प्रेरित इन्द्रिय-कर्म का पथदर्शक है ||११||
जैसी कामना वैसी भावनाओं में ईश्वर विद्यमान है ,
जैसी चाहत वैसी राहत, यही ईश्वरीय वरदान है ||१२||
अंतर-मन पर ईश्वर का दिव्य अधिष्ठान होता है ,
ईश्वर रूपी चैतन्य से मन:शक्ति उज्वलित होती है ||१३||
मन:चक्षु से दृश्य होता है, वो ईश्वर की पहचान है ,
मन:इन्द्रियों से शुभकर्म, वो ईश्वरीय अभियान है ||१४||
ए ईश्वर तुझे शरण, ए सृष्टीकर्ता नियंता भगवान ,
कर दे मेरे मन में सद्गुणों की ज्योति का प्रकटन ||१५||
ए गहन बस्ती के स्वामी, तुझे करूं वारंवार नमन ,
तेरे अस्तित्व दर्शन से कर दे मेरा सार्थक जीवन ||१६||
ईश्वर की पहचान , भूल चला इंसान ,
सृष्टि के कण कण में , वही है विद्यमान ||१||
ईश्वर का सामर्थ्य तो है , युगों से जाहिर ,
पर ईश्वर कहाँ है , कहीं सदेह नहीं हाजिर ||२||
ईश्वर अनुभूति होती है , भीतर मन-कल्पित ,
जैसा नाम रूप चाहे , वैसा होता है प्रतीत ||३||
‘श्रीराम’ नाम से पुकारो, या उसे नृसिंह कहो ,
सुंदर रूप को देखो , या उसे भयंकर चाहो ||४||
ईश्वर सब से है परा , निर्गुणी निराकार ,
ईश्वर है आनंद, तथा प्यार का भंडार ||५||
ईश्वर समृध्द संपन्न चैतन्यमय परमात्मा ,
महान परमात्मा का हीं है सूक्ष्मांश जीवात्मा ||६||
भगाओ प्रथम क्रोध मोह , अपनाओ दया, शांति ,
श्रध्दा निष्ठा से है प्रेरित , ईश्वर की प्रीति ||७||
हटाओ विकार तथा लालसा परिग्रह प्रवृत्ति ,
अपनाओ वैराग्य , एकात्मता , सेवा-वृत्ति ||८||
दृढ चिंतन से , उदित होती ज्ञान-ज्योती ,
फिर उभरेगी मन में, ईश्वर की प्रचिती ||९||
मनव्दारे आत्मा, शुध्दबुध्दि को कर्मज्ञान देता ,
सज्ञान बुद्धि फिर देता, इंद्रिय-शुभकार्यता ||१०||
सद्भाव सुविचार यही है , ईश्वर का वरदान ,
तब मन में होती है , कर्मज्ञान की पहचान ||११||
सत्य का दर्शन ही है, ईश्वर की पहचान ,
मानव सेवा धर्म है , ईश्वर का अभियान ||१२||
'श्रीराम' की सेवा, दया, त्याग, शांति, प्रिती समान ,
मानव खुद बन जातां, ईश्वरीय अवतार महान ||१३||
bhaktisarita
मंदिर - मस्जिद में नहीं ईश्वर का स्थान ,
वो तो है अपने हिं दिल में विराजमान ||१||
'श्रीराम', मोहम्मद, ईसा, बुध्द एक समान ,
धर्म की शिक्षा में, क्यों हो नाम पर गुमान ||२||
इन महा-मानवों का चरित्र था महान ,
इसी लिये उनको, कहते हैं भगवान ||३||
सब का खुदा , जब एकहि वो चलायमान ,
सर्वधर्म समभाव का, दिल से हो सम्मान ||४||
संयम, शांति, प्रेम, सद्भाव को दो निवारा ,
भेदभाव मिटाओं, अपनाओं भाईचारा ||५||
धर्म के नाम पर, क्यों लड़ते हों जजमान ,
जब सब हैं एक हिं ईश्वर की संतान ||६||
bhaktisarita
जय हो गुरु, ज्ञान के सागर, हम करें नमन ,
भगवान स्वरूपी सद्गुरु के, हम आए शरण ||धृ.||
माँबाप देते जीवन में, प्यार से पालन पोषन ,
लेकिन गुरु बिना ना मिलती, जीवन का घड़न |
सच्चा और ऊचा बनने का, करते जो पथदर्शन ,
ऐसे गुरुजन का करें वारंवार अभिवादन ||१||
शिष्य प्रति गुरु को, तनमन से हो जाता लगाव ,
शिष्य की तरक्की, यही सोच मे, गुरुका मनोभाव |
गुरु है त्याग की मूर्ति, सिखलाती है जो समर्पन ,
ऐसे गुरुजन का करें वारंवार अभिवादन ||२||
गुरु-शिष्य का अतूट बंधन, सब रिश्तों से ज़ुदा ,
उलझन में गुरु-स्मरन, उन्हें सुलझाती सदा |
सामाजिक उत्थान की होती है, जिसे सच्ची लगन ,
ऐसे गुरुजन का करें वारंवार अभिवादन ||३||
एकलव्य की गुरु-निष्ठा, रखे गुरु पे एतबार ,
'श्रीराम' की गुरु-सेवा, जाने गुरु का इख़्तियार |
माता पिता समान, गुरु की रहमत है जीवन ,
ऐसे गुरुजन का करें वारंवार अभिवादन ||४||
भूल चला हैं आदमजादा, तूं हि तो खुद है आसूदा ,
पहचान अजखुद आमादा, बन जा तूं खुद शहज़ादा ||१||
ना समज खुद को आलूदा, तूं हि तो है जो पहुंचा चंदा ,
दिमाग़ है तेरा आज़मूदा, बन जा तूं खुद शहज़ादा ||२||
सबेरे सबेरे ना बन आसेबज़दा, सोच कोई नेक इरादा ,
खुश मिजाज़ रखना सदा, बन जा तूं खुद शहज़ादा ||३||
नमन करले बुद्रुक माँबाप दादी दादा, प्यारसे भरले तेरी अदा ,
जीवन में रहेगी शान्ति सदा, बनजा तूं खुद शहज़ादा ||४||
बुलंद है तूं, नहीं है उफ़तादा, सोच कोई नेक काजधंदा ,
सुकर्मों से मिलेगा इफ़ादा, बन जा तूं खुद शहज़ादा ||५||
बन जा आज़ाद मनिश बंदा, बनने कुछ अहद तूं हुआ है पैदा,
सच्चाई का साथ देता है खुदा, बनजा तूं खुद शहज़ादा ||६||
शांती प्यार का यह साधा सौदा, कुकर्मों पर बरसाती है गदा ,
श्रीराम' का यह रहा वादा, बन जा तूं खुद शहज़ादा ||७||
oooooooooooooooooआदमजादा = मनुष्य , मानव | आसूदा = संपन्न, समृध्द | अजखुद = स्वत: | आमादा = तत्पर | आलूदा = सुका, कोरड़ा, कमजोर | आज़मूदा = जांचा हुआ | आसेबज़दा = मुर्दा, प्रेतग्रस्त | इरादा = संकल्प, विचार | खुश मिजाज़ = प्रसन्न चित्त | अदा = वर्तनुक, हावभाव | बुलंद = शक्तिमान, मजबूत | उफ़तादा = पतित | काजधंदा = व्यवसाय, कार्य, काम | इफ़ादा = लाभ, फ़ायदा | आज़ाद मनिश = उदार हृदय, दिलदार | अहद = अव्दितीय, अकेला |
bhaktisarita
अपना मन तो है, एक पतंग ,
ढील देने से, भरता है तरंग ||१||
खो देता संतुलन, अपनी वश के बाहर ,
फिर गोता लगता, इधर उधर ||२||
संवारो मन को, अच्छी सोच से हरदम ,
मन की सोच हिं है, इच्छाओं का उद्गम ||३||
अच्छी सोच से, होगा अच्छा काम ,
यही है, सफल जीवन का पैगाम ||४||
फल, जो हानि हो या लाभ, वो है विधि के हाथ ,
कर्म की भोग से बनेगा, भाग्य अपने साथ ||५||
कर्म अनुसार, अच्छा या बुरा, भाग्य बनता,
अपने सुकर्मों से, खुद हो भाग्यविधाता ||६||
bhaktisarita
बम बम भोले गौरीशंकर | महादेव त्रेलोक्यपती |
जय हो तेरी पार्वतीपति | स्वीकार करो, प्रभु आरती ||ध्रु.||
शिव शिव शिव, शिव सदाशिवाय | हर हर हर, हर महादेवाय |
मन्दिर तेरे आकर हम | गातें निशदिन , तेरी आरती |
जय हो तेरी पार्वतिपति. | स्वीकार करो, प्रभु आरती ||१||
सबसे न्यारा, गौरि का प्यारा | ध्यान धरू हम तेरा |
सारे जगत का तू परमेश्वर | परवत पर, तेरा डेरा ||
देव, ऋषिमुनि, दर्शन करके | तेरी गाते, है स्तुति |
जय हो तेरी पार्वतिपति. | स्वीकार करो, प्रभु आरती ||२||
जटाजूट शिरी, गंगाधारी | त्रिनयनी संग, चंदा शिखरी |
भस्मलेपित, रूप मनोहारी | पशुपती ये, वृषभ-विहारी ||
शिवगण मन, आनंद पाकें | चरणीं तेरे, खोते है मति |
जय हो तेरी पार्वतिपति. | स्वीकार करो, प्रभु आरती ||3||
डम डम बजावे, हाथ में डमरू | नटराजन, बांध के घुंधरू |
छम छम नाचे, गौरिशंकर | सबजन देखत, ताल धरू ||
सकल जगत, हर्षित होकर | तेरी गाते है स्तुति |
जय हो तेरी पार्वतिपति. | स्वीकार करो, प्रभु आरती ||४||
गलेमे सर्पमाला धारे | हाथ में त्रिशूल, जग को तारे |
तूंहि कर्ता, तूंहि दुखहर्ता | सुर असुर को, तुम हि संवारे ||
सारा जगत, लगत चरणों में | तेरी गाते है स्तुति |
जय हो तेरी पार्वतिपति. | स्वीकार करो, प्रभु आरती ||५||
ओं नमः शिवाय, ओं नमः शिवाय || x४
bhaktisarita by shreeram kakade
श्रीराम जय राम , जय जय राम , जय जय राम |
जय रघुनंदन , जय सियाराम , अवधपूरी के राजाराम ||ध्रु.||
कौसल्यानंदन, दशरथी राम , वशिष्टगुरु के. प्यारे राम |
जानकीवल्लभ, रघुकुली राम , त्रेतायुगी सूर्यवंशी राम ||
श्रीराम जय राम , जय जय राम , जय जय राम ||१||
पत्थरी अहिल्या, उद्धारक राम , शबरी के झूटे, बेर खावे राम |
शत्रू विनाशक, धनुर्धारी राम , रावण-विदारी, बलशाली राम ||
श्रीराम जय राम जय जय राम , जय जय राम ||२||
संकट मोचक, राजा राम , भगत वत्सल, जय सियाराम |
हनुमानजी के, आराध्य राम , भक्तों के मन-भावक राम ||
श्रीराम जय राम, जय जय राम , जय जय राम ||३||
दीनदयालु, भक्त कृपालु , सीतापति, उद्धारक राम |
शिवजी ध्यावत. राम का नाम , श्रीराम चरणौं, कोटि प्रणाम ||
श्रीराम जय राम, जय जय राम , जय जय राम ||४||
मंगल कारी, श्रीरामका नाम , पापताप हर्ता राजाराम,
जपू निरंतर, तेरा नाम , कृपा करो हे, प्रभु श्रीराम ||
श्रीराम जय राम, जय जय राम , जय जय राम ||५||
जय श्रीराम , जय श्रीराम || x४
तेरी जै जैकार करे हम | हे , सरस्वती शारदे |
ज्ञान बुद्धीकी, तुम जननी | हमपे कृपा करदे ||ध्रु.||
श्वेत वसनी, माला धारिनी | हंसासनी वाहिनी |
वीणा पुस्तक, लिएं हाथोंमे | विराजे पद्मासनी ||
ब्रह्माजीकी, उज्वल कन्या | सत्य मूरत, सात्विक गुणी |
दयालु कृपालु, तुम हो जननी | हमपे कृपा कर दे ||१||
स्वर अक्षर, वाणी -वर्धिनी | अंधेरा मनसे हटादे |
ज्ञानदिपक जला दे मैया | अज्ञान-अंधेरा मिटादे ||
मनका विश्वास, बढा दे | आशिषसे, जय मिलादे |
मनकी शक्ति, तुम हो जननी | हमपे कृपा कर दे ||२||
प्रेमभावसे, मतभेद हटादे | सच्चाईसे, शुद्धमन दे |
सद्-बुद्धीसे, सद्-भाव दे | मंगलदायी, वरदान दे ||
मैयां तेरी, आए शरणमें | साधकोंका, उद्धार करदे |
सफल जीवन, करदे जननी | हमपे भी, कृपा करदे ||३||
तेरी जय जैकार हो | तेरी जय जैकार || (x४)
ॐ नमामि त्वां गणपतिम् | अग्रपूज्यम् अधिपतिम् |
एकदंतम् गजाननम् | महाकायम् लम्बोदरम् |
सिंदूरवदनं शूर्पकर्णम् | मुषकारूढं गणराजम् |
मोदक्प्रियम् वरदहस्तम् | वीरम् पाशान्कुशधरम् |
विश्ववंद्यं विनायकम् | सकलविघ्न - विनाशकम् |
शुभं-करम् मंगलाय | पार्वतिसूताय नमो नम: ||
ॐ नमामि त्वां सद्गुरूम् | जितेंद्रियम् शान्तमूर्तिम् |
योगेश्वरम् सिद्धेश्वरम् | अतीन्द्रियम् ज्ञानमूर्तिम् |
दयावन्तम् करुणाकरम् | बुद्धिवन्तम् गुणवन्तम् |
महाज्ञान-प्रदायकाय | सच्चिदानन्दाय नमो नम: ||
ॐ नमामि त्वां दत्तात्रेयम् | अवधूतम् त्रिदेवमयम् |
त्रयीशीरम् षट्भुजाधरम् | जटाधारम् योगीश्वरम् |
विभूतिलिप्त - सर्वांगम् | रुद्राक्षमाला - विभूषितम् |
भवतापपाप-हरणाय | अनसूयासुताय नमो नम: ||
- ४.१
ॐ नमामि त्वाम् सरस्वतीम् | महाविद्याम् ऐम् रूपिणीम् |
ब्रह्मसुताम् ज्ञानप्रदाम् | बुद्धिप्रदाम् मतिप्रदाम् |
सात्विकाम् प्रसन्नवदनाम् | वीणाहस्ताम् हंसवाहिनीम् |
ललितकला - सम्पन्नायै | शारदायै नमो नम: ||
-४.२-
ॐ श्वेतपद्मासनास्थिताम् | श्वेतपुष्पमाला - भूषिताम् |
श्वेतवसनाम् श्वेतगन्धाम् | श्वेतचन्दनचर्चिताम् ||
श्वेतवर्णाम् श्वेत - तेजाम् | श्वेतहंस - वाहिनीम् |
श्वेतप्रियाम् श्वेतमूर्तयै | शारदायै नमो नम: ||
ॐ नमामि त्वाम् महादेवम् | सुरासुरै: वंदितम् आदिदेवम् |
व्याघ्रचर्माम्बरधरं देवम् | भस्मलेपन-सर्वांगम् |
गंगाधरम् जटाशंकरम् | निलकंठम् चंद्रशेखरम् |
त्रिशूलडमरुधरम् शिवम् | वासुकि: कंठभूषणम् |
वृषभारूढं विश्वनाथम् | भक्तवत्सलं भोलेनाथम् |
रमसे कैलासपतीम् | गौरिगणेशाभ्यां सहितम् |
महाकालं महारूद्रम् | मृत्युंजयं मोक्षदं भद्रम् |
अभयं-करम् सदाशिवाय | पार्वतिपतये नमो नम: ||
ॐ नमामि त्वां महादेवीम् | गौरिम् त्रिपूरसुंदरिम् |
भवानीम् भद्रां रुद्राणीं | शिवार्धान्गिनीम् पार्वतीम् |
दयानिधीम् करूणामयिम् | जगन्मातरम् भगवतीम् |
कल्याणीम् शांतिप्रदायै | शिवकांतायै नमो नम: ||
ॐ नमामि त्वां जगदम्बाम् | महाशक्तिम् ह्रीम् कारिणीम् |
पार्वति - अंगभूतानीम् | दुर्गांम् दुर्गती-नाशिनीम् |
सुन्दरीं तेजस्विनीम् | उग्ररूपां सिंहवाहिनीम् |
अष्टभुजां भयहारिणीं | अष्टायुधा - शस्त्रधरिणीम् |
अभयाम् महिषासुर-मर्दिनीम् | अंबिकाम् दु:खमोचनीम् |
सुखशांति - प्रदायै देव्यै | शिवप्रकृत्यै नमो नम: ||
- ८.१-
ॐ नमामि क्रीम् महाकालीम् | कालकर्तीम् कालरूपिणीम् |
काली स्मशान - वासिनीम् | शवासन - विराजिनीम् |
खड्ग - मुण्ड - धारिणीम् | मुण्डमाला – विभुषिनीम् |
अभयवर - प्रदायै देव्यै | चित्-शक्तयै नमो नम: ||
-८.२-
ॐ नमामि त्वां कालिकां | चित्-शक्तिं क्रीम् कारिणीं |
आदिमध्यांत-रहितम् | त्रिकालातीतां त्रिगुणातीतां |
पंचतत्वेस्थिता - तारां | सर्वान्ते - स्थितां कालिकां |
चैतन्यां कृष्णवर्णायै | दक्षिणाकाल्यै नमो नम: ||
ॐ नमामि त्वाम् व्यंकटेशम् | विश्वाधारम् सुरेशम् |
लक्ष्मीकांतम् शेषशायिनम् | सर्वसंपन्नम् रमेशम् |
पद्मनाभम् गरुडध्वजम् | जगदोद्धारम् महाराजम् |
भक्तवत्सलम् जनार्दनाय | जगन्नाथाय नमो नम: ||
ॐ नमामि त्वाम् नारायणम् | तुभ्यम् ध्यानम् परमपावनम् |
मयूर - पिच्छ - जडितम् | मुकुट: रत्नर्मंडितम् |
कर्णौ मोत्तिक - कुण्डलम् | मधुरस्मितम् श्यामवर्णम् |
मणिकौस्तुभालन्कारम् | वक्षे वैजयंती-पुष्पहारम् |
श्रीवत्सलांछन - भूषणम् | नाभिपद्मम् ब्रह्मोद्-भवम् |
चतुर्भुजम् बाहौर्भूषणम् | शंखचक्रगदा-पद्मधारणम् |
विमलम् पितांबरालंकृतम् | कमलचरणौ मनभावनम् |
य: स्वरूपम् स्मरेन्मात्रेण विष्णु: प्रसिदती नित्यम् ||
ॐ नमामि श्रीम् महालक्ष्मीम् | महामायाम् क्लीम् रूपीणीम् |
मंगलाम् क्षीराब्धितनयाम् | नारायणीम् पद्मालयाम् |
वैष्णवीम् कोलासूर्- मर्दिनीम् | अभयदान-प्रदायीनीम् |
धनैश्वर्यप्रदायै देव्यै | विष्णुकांतायै नमो नम: ||
ॐ नमामि त्वाम् मुकुंदम् | देवकी- वसुदेवौ नंदनम् |
गोपीगृहे वर्धनम् गोपालम् | नंद-यशोदे गुणी-गोविंदम् |
स्नेहमयम् गोकुलरमणम् | राधायाः त्वम् मनमोहनम् |
कंस-चाणूर मर्दनम् | महा-दैत्यान् निर्दलनम् |
अर्जुन: -पांडवादि सख्यम् | महाभारते कौरवादि हननम् |
भगवदगीता-प्रदानाय | श्रीकृष्णाय नमो नमः ||
ॐ नमामि त्वाम् पुरुषोत्तमम् | राघवम् रघुकुल- भूषणम् |
दशरथ- कौशल्ये नंदनम् | श्रीरामम् जानकी-वल्लभम् |
पित्राज्ञा: वने गमनम् | रावणेन जानकी-हरणम् |
सुग्रीव-हनुमान सख्यम् | रावणं-कुंभकर्णम्-आदि हननम् |
अयोध्या प्रवर्तने पुनः | राज्याभिषेकम् पुरै: कृतम् |
कृपालु-भक्तवत्सलाय | श्रीरामचंद्राय नमो नमः ||
ॐ नमामि त्वाम् हनुमन्तम् | महाबलिम् जयवन्तम् |
अञ्जनीसूतम् कपिवरम् | जितेंद्रियम् बुद्धिवन्तम् |
श्रीरामलक्ष्मण - सेवकम् | श्रीरामभक्ति - परायणम् |
संकटमोचनम् महावीराय | बजरंगाय नमो नम: ||
ॐ नमामि त्वाम् सूर्यदेवताम् | जगत्प्रदिपम् प्रभाकरम् |
गगनलिंगमाराध्यम् | उत्पत्तिरक्षा - प्रलयांतकम् |
तेज:पुञ्जम् महादिव्यम् | दातारम् सर्व-सम्पदाम् |
आयुरारोग्य - प्रदायकाय | आदित्याय नमो नम: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम: || श्री सरस्वत्यै नम: ||
श्री पार्वत्यै नम: || श्री शिवशंकराय नम: || हरि: ॐ ||
अथ सौभाग्यप्रदम् श्री त्रिदेवतासूक्तम् प्रारम्भ: ||
ॐ नमामि त्वाम् गणपतिम् | सगुणरूपम् ओम्कारम् |
एकदन्तम् गजाननम् | महाकायम् लंबोदरम् ||
मोदक्प्रियम् वरदहस्तम् | वीरम् पाशान्कुशधरम् |
सर्वसिध्दम् मंगलाय | पार्वतिसूताय नमो नम: || १ ||
ॐ नमामि त्वाम् महादेवम् | सुरासुरै: वन्दितम् |
जटाधरम् चन्द्रशेखरम् | गंगाधरम् भस्मभूषितम् ||
नन्दीश्वरम् डमरुधरम् | वासुकि: कण्ठभूषणम् |
पापहरम् सदाशिवाय | पार्वतिपतये नमो नम: || २ ||
ॐ नमामि त्वाम् विश्वेश्वरिम् | मातृरूपाम् प्रकृतिम् |
भवानीम् भद्रां रुद्राणीम् | शिवार्धांगीनीम् पार्वतीम् ||
दयानिधिम् करुणामयीम् | जगन्मातरम् भगवतीम् |
कल्याणीम् शान्तिप्रदायै | शिवकान्तायै नमो नम: || ३ ||
इदम् श्रीरामनारायणकृतम् | श्री त्रिदेवतासूक्तम् वरप्रदम् |
गणेश - गौरि - शंकरा: | सदा प्रसन्ना भवन्तु मे ||
विद्यार्थी लभते बुद्धिम् | कार्यार्थी लभते सिद्धिम् |
शरणार्थी लभते अभयम् | सर्वत्रम् लभते विजयम् || ४ ||
इति श्री त्रिदेवतासूक्तम् सम्पूर्णम् || ॐ तत्सत् ||
श्रीगणेश - गौरि - शंकरार्पणमस्तु || शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम: || श्री सरस्वत्यै नम: || हरि: ॐ ||
अथ अभयप्रदम् श्रीगणेशस्तोत्रम् प्रारम्भ: ||
ॐ नमामि त्वाम् विनायकम् | सकल- विघ्न- विनाशकम् |
कार्यारम्भे अग्रपूजितम् | कार्यसिद्धि: सफलितम् ||
आद्यम् अनाद्यम् अनन्तम् | आदिपूज्यम् सनातनम् |
श्रेष्ठम् वरिष्ठम् जेष्ठराजम् | जगद्वन्द्यम् महाराजम् ||१||
पावनम् पवित्रम् परम् | परमधामम् परमेश्वरम् |
विमलम् निर्मलम् मंगलम् | मंगलमूर्तीम् पुण्यफलम् ||
शुभध्यानम् शुभचिन्तनम् | शुभश्रवणम् शुभदर्शनम् |
शुभकर्मम् शुभगतिम् | अशुभहरम् शुभमूर्तिम् ||२||
भक्तिप्रियम् भक्तिरूपकम् | भक्तेभ्य: भक्तिदायकम् |
जगन्मंगल - कारकम् | सकल – सुख - प्रदायकम् ||
सर्वात्मकम् सर्वाधारम् | सर्वपूज्यम् सर्वेश्वरम् |
सच्चिदानंदम् ब्रम्हरूपकम् | नमामि त्वम् जगद्वंद्यमेकम् ||३||
मूलाधारस्थित - ईशम् | ज्योतिर्मयम् गणेशम् |
हृत्कमल – उन्मीलीदम् | योगीभ्यो: हृदयानंदम् ||
गं कारम् त्वम् गणनाथम् | श्रीरूपम् त्वम् सर्वात्मकम् |
नमामि त्वाम् गणपतिम् | सगुणरुपम् ओंकारम् ||४||
उमांगोद्भवम् शिवसूतम् | सकल - जगत् - कौतुकम् |
कोटिसूर्य - रश्मीधृतम् | सदानंदम् सुस्मितम् ||
गुणेशम् गणेशम् सुरेशम् | सर्वेशम् सर्वदेवस्येशम् |
ललितम् मुदावहम् कन्दम् | मनोहरम् नेत्र – सुखदम् ||५||
आनन्दरूपम् उल्हासितम् | प्रसन्नरूपम् प्रफुल्लितम् |
सुन्दरम् मधुरम् सम्मोहकम् | लावण्यम् आल्हादकारकम् ||
वक्रतुण्डम् दीर्घतुण्डम् | शुण्डाशोभितम् गजवक्त्रम् |
गजाननम् गजवदनम् | सुमुखम् सिंदूरवदनम् ||६||
शूर्पकर्णम् कर्णोकुण्डलम् | एकदन्तम् खन्डितरदनम् |
अर्धोन्मीलित - नेत्रव्दयम् | कमलाक्षम् वात्सल्यमयम् ||
भालचन्द्रम् कस्तुरी - तिलकम् | हिरेजडीत - मुकुटधरम् |
दिव्यभूषाम्बरस्त्रजम् | मूषकारूढम् गणराजम् ||७||
अखण्डम् प्रचण्डम् शुण्डम् | महाकायम् लम्बोदरम् |
सुगन्धलिप्त - सर्वान्गम् | यद्न्योपवित - भुजन्गम् ||
धूर्मवर्णम् चतुर्भुजम् | वरदहस्तम् करमोदकम् |
पाशहस्तम् अन्कुशधरम् | महाबाहो शूरवीरम् ||८||
रक्तवर्ण - सिन्दूर - लिप्तम् | दिव्यालन्कार - विभूषितम् |
दुर्वाप्रियम् शीतप्रणीतम् | दुर्वान्कुर - कण्ठशोभितम् ||
नृत्यगान - कलाप्रियम् | गजाननम् नर्तकम् स्वयम् |
नारदतुंबरौ गीतगायनम् | शारदे वीणावादनम् ||९||
मृदंगनादम् प्रेरितम् | गणेशपाद - थिरकितम् |
छन्-छन् नुपुरनादम् | गौरिशंकरौ - संतोषितम् ||
व्दिभार्यान्कम् ऋध्दिसिध्दिपतीम् | सुशोभितम् जगद्पतिम् |
बुध्दिसिध्दि – प्रदायकम् | सर्वसंसार - संचालकम् ||१०||
सर्वविद्या - विशारदम् | विद्यापतीम् ज्ञान - प्रदम् |
सर्वसिद्धम् सर्वप्रदम् | सर्वकार्येषु सिद्धिप्रदम् ||
चिन्तामणीम् चिन्ताहरम् | विघ्नेशम् विघ्नहरम् |
व्याधिहरम् दु:खहरम् | रिपूहरम् पापहरम् ||११||
इदम् श्रीरामनारायणकृतम् | अभयप्रदम् श्रीगणेशस्तोत्रम् |
य: पठेन्नर : लभते | आयुरारोग्य - ऐश्रयाणि एते ||
सकल - शुभकरम् गणपतिम् | वरदम् परम् सुखशान्तिम् |
सकल वृध्दिम् च सिध्दिम् |प्राप्नोति भुक्तिम् च मुक्तिम् ||१२||
भवते विघ्नेश्वरम् | त्रिविध - भवतापाप - हरणम् |
य: स्तोत्रम् पठेन्नित्यम् | सर्वत्रम् भवति सौभाग्यप्रदम् ||
गणपति: भवे नित्यम् | प्रसन्नम् वरदम् शुभम् |
य: स्तोत्रम् मोक्षपददायकम् | आप्नोति गणेशस्यायुज्यम् ||१३||
इति श्रीगणेशस्तोत्रम् सम्पूर्णम् || ॐ तत्सत् ||
श्रीगणेशार्पणमस्तु || शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम: || श्री सरस्वत्यै नम: || श्री महादेव्यै नम: ||
|| हरि: ॐ || अथ आत्मशक्तिर्विकसितम् श्रीदेवीसूक्तम् प्रारम्भ:||
ॐ नमामि त्वाम् परमेश्वरीम् | विश्वात्मिकाम् विश्वधारिणीम् |
जगत्-जननीम् कल्याणीम् | मातृरूपेण सर्वव्यापिनीम् ||
महाशक्तिम् महाविद्याम् | महामायाम् आद्यामनाद्याम |
परममोक्ष - प्रदायै देव्यै | परमात्मन्यै नमो नम: || १ ||
ॐ नमामि त्वाम् सरस्वतीम् | महाविद्याम् ऐम् रूपिणीम् |
ब्रह्मसुताम् ज्ञानप्रदाम् | बुध्दिप्रदाम् मतिप्रदाम् ||
सात्विकाम् प्रसन्नवदनाम् | वीणाहस्ताम् हंसवाहिनीम् |
ललितकला - सम्पनायै देव्यै | शारदायै नमो नम: || २ ||
ॐ नमामि त्वाम् जगदम्बाम् | महाशक्तिम् ह्रीम् कारिणीम् |
पार्वति - अंग भूतानीम् | दुर्गाम् दुर्गतीनाशिनीम् ||
अभयाम् महिषासुर- मर्दिनीम् | अम्बिकाम् दु:खमोचनीम् |
सुखशांति - प्रदायै देव्यै | शिवप्रकृत्यै नमो नम: || ३ ||
ॐ नमामि श्रीम् महालक्ष्मीम् | महामायाम् क्लीम् रूपिणीम् |
मंगलाम् क्षीराब्धितनयाम् | नारायणीम् पद्मालयाम् ||
वैष्णवीम् कोलासूर - मर्दिनीम् | अभयदान - प्रदायीनीम् |
धनैश्वर्य - प्रदायै देव्यै | विष्णुकांतायै नमो नम: || ४ ||
ॐ नमामि त्वाम् कालिकाम् | चित्शक्तिम् क्रीम् कारिणीम् |
आदिमध्यांत-रहिताम् | त्रिकालातीताम् त्रिगुणातीताम् ||
पंचतत्त्वेस्थिता- ताराम् | सर्वान्ते स्थिताम् कालिकाम् |
चैतन्याम् चिद्ब्रह्मरूपिण्यै | दक्षिणाकाल्यै नमो नम: || ५ ||
इति श्रीरामनारायण-विरचितम् श्रीदेवीसूक्तम् सम्पूर्णम् |
ॐ तत्सत् || श्रीदेव्यर्पणमस्तु ||
शुभम् भवतु || ॐ शान्ति:||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम: || श्री सरस्वत्यै नम: || हरि: ॐ ||
अथ बुद्धिप्रदम् श्रीसरस्वती स्तोत्रम् प्रारम्भ: ||
ॐ नमामि त्वाम् सरस्वतीम् | महाविद्याम् ऐम् रूपिणीम् |
विद्यारम्भे अग्रपूजीताम् | बुद्धिम् सिद्धिम् सुफलिताम् ||१||
ललिताम् गौरवर्णाम् | सात्विकाम् श्वेतवसनाम् |
प्रसन्नरूपाम् मन्दस्मिताम् | करुणामयीम् वात्सल्यनेत्राम् ||२||
श्वेतपद्मासनास्थिताम् | श्वेतपुष्प – माला - भूषिताम् |
श्वेतवसनाम् श्वेतगन्धाम् | श्वेतचन्दनचर्चिताम् ||३||
श्वेतप्रियाम् श्वेतमुर्तिम् | श्वेतहंस - वाहिनीम् |
श्वेतवर्णाम् श्वेत – तेजाम् | श्वेततेज – प्रकाशिताम् ||४||
मयूर - सानिध्य – प्रसन्नाम् | ललितकला - सम्पन्नाम् |
चतुर्भुजाम् वीणाहस्ताम् | गानवाद्यकला - प्रणिताम् ||५||
मधुरवीणानादिताम् | सकलसंसार - मोहिताम् |
तालछन्द - स्वरवर्धिनीम् | गीतसंगीत वर्षिनीम् ||६||
जपमाला दक्षिणहस्ताम| वेदपुस्तिका वामहस्ताम् |
विद्यारुपाम् ज्ञानवतीम् | ब्रह्ममुखाम् वेदवतीम् ||७||
अक्षराम् स्वररूपिणीम् | शब्दज्ञात्रीम् शब्दरूपिणीम् |
जिव्हाग्रे वसेत् नित्याम् | वाक्सिद्धीनीम् वाक्प्रदाम् ||८||
धवलपक्ष - हंसवाहिनीम् | सद्विवेक - बुद्धी - रूपिणीम् |
निश्चलाम् श्वेतकमलासनाम् | सद्गुण विकासिनीम् ||९||
बुद्धिविवेक - प्रज्वलिनीम् | हृदयभवन - प्रकाशिनीम् |
सुमति: हृत्-प्रफुल्लीनीम् | मन:शांति: प्रदायीनीम् ||१०||
शारदाम् ब्रह्मनंदिनीम् | सकल - विद्या - स्वामिनीम् |
विद्याप्रदाम् ज्ञानवर्धिनीम् | बुद्धिप्रदाम् मतिप्रदाम् ||११||
श्रीरामनारायण- रचितम् | यत् बुद्धिप्रदम् सरस्वती स्तोत्रम् |
ये पठनमात्रेण स्मरन्ति | सकल विद्याम् ते लभन्ते ||१२||
य: स्तोत्रम् पठेन्नित्यम् | मनोविकारा: तस्य गच्छन्ति |
मूढ - जडताम् च नश्यति | सर्वत्र विजय: भवति ||१३||
इति श्रीसरस्वती स्तोत्रम् सम्पूर्णम् || ॐ तत्सत् ||
श्रीसरस्वत्यर्पणमस्तु || शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम: | श्री सरस्वत्यै नम: | श्री सद्गुरवे नम: ||
हरि: ॐ || अथ ज्ञानप्रदम् श्रीसद्गुरुस्तोत्रम् प्रारम्भ: ||
ॐ नमामि त्वाम् सद्गुरूम् | जीतेन्द्रियम् शांतमूर्तिम् |
योगेश्वरम् सिद्धेश्वरम् | अतीन्द्रियम् ज्ञानमूर्तिम् ||१||
निर्गुणम् निर्विकारम् | निर्मलम् अनन्तम् निरंतरम् |
केवलम् विश्वव्यापक-तत्वम् | व्योमातीतम् परात्परम् ||२||
महापदम् महातत्वम् | महातेजम् महागतीम् |
महाविद्याम् महाशान्तिम् | महायोगम् महाशक्तिम् ||३||
त्रिदेवात्मकम् त्रिगुणात्मकम् | त्रिगुणातीतम् त्रिगुणहरणम् |
त्रिलोकसाक्षीम् त्रिलोकवंद्यम् | त्रिकालदर्शीम् त्रितापहरणम् ||४||
सर्वात्मकम् सर्वसमर्थम् | सर्वोपकारीम् सर्वचालकम् |
सर्वाधारम् सर्वाकर्षकम् | सर्वानन्दम् सर्वपालकम् ||५||
महादैन्यम् महाव्याधिम् | महाविघ्नम् च विनाशकम् |
महाज्ञानम् - प्रदायकाय | सच्चिदानन्दाय नमो नम: ||६||
इति श्रीरामनारायणकृतम् श्रीसद्गुरुस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ||
ॐ तत्सत् || श्री सद्गुरू-अर्पणमस्तु || शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम: || श्री सरस्वत्यै नम: || श्री दत्तात्रेयाय नम: ||
हरि: ॐ || अथ पापतापहरम् श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रम् प्रारम्भ: ||
ॐ नमामि त्वाम् दत्तात्रेयम् | अत्रिसूतम् अवधूतम् |
जटाधारम् सात्विकम् | गोदातटे निवासितम् ||१||
तेज:पुंजम् जगद्गुरूम् | भक्तवत्सलम् त्रिदेवमयम् |
त्रिदेवगुणम् त्रयमूर्तिम् | त्रयीशिरम् षट्भुजाधरम् ||२||
शंख - कमन्डलु - गदाधरम् | त्रिशूल - डमरू - चक्रधरम् |
विभूतिलिप्तम् - सर्वान्गम् | रुद्राक्षमाला - विभूषितम् ||३||
कामधेनोर्प्रतिपालकम् | मनोकामना - पूर्तिकरम् |
वेदरुपीर्चतुर्श्वानाधारम् | ज्ञानविज्ञान - प्रदायकम् ||४||
देवाधिदेवम् दर्पहरणम् | दिनोद्धारम् दु:खभन्जनम् |
दशातीतम् दशान्तकम् | दिगम्बरम् दीव्यदर्शनम् ||५||
महातपस्वीम् ध्यानरतम् | महायोगी - सिद्धेश्वरम् |
त्रिविधभवपाशनाशकाय | अनुसूयासूताय नमो नम: ||६||
इति श्रीरामनारायण-विरचितम् श्रीदत्तात्रेयस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ||
ॐ तत्सत् || श्रीदत्तात्रेयार्पणमस्तु || शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
bhaktisarita
संत: श्रीगजाननम् , शेगाव-क्षेत्रे निवासितम्
नित्यानंद-स्वरूपं, मम हृदय-कमले राजितम् ||१||
गण गण गणात बोते , गण गण गणात बोते
ईति अद्भूतं दिव्य-मंत्रम् , भज भज सदोदीतम् ||२||
ध्यानं साधुं गजाननम् , परं पावनं भगवंतम्
गण गण गणात बोते , मंगलमयं मंत्रं जागृतम् ||३||
परमहंसं सच्चिदानंदम् , जितेन्द्रियं ध्यानरतम्
दयासागरं गुणवन्तम् , आनंद-मूर्तीम् अवधूतम् ||४||
भक्तप्रियं जनकल्याणम् , उदारं करुणाकरम्
धावसि जनरक्षणार्थम् , निर्विघ्नं अभयंकरम् ||५||
गहन-वर्तंन: सिद्धेश्वरम् , त्वं परब्रह्मं सनातनम्
सर्वेशं तव अद्भूतकृत्या: , महिम्नः तव महानम् ||६||
निर्जलं करोसि जलमयम् , ओंकारेश्वरे तारसि जनम्
विविधरुपे त्वं अवतरसि , भवति भक्तभाव: कारणम् ||७||
सर्वहितचिन्तकं करुणामयम् , तत्परं पतित-उद्धारकम्
धैर्यं च स्थैर्यं प्रदायकम् , परमामृतं नाम: बंधमोक्षकम् ||८||
मंगलमयं भक्तवत्सलं , कुरु कल्याणं विपदाया: मुक्तम्
शरणं तव पदकमलौ , कुर्वन्ति कोटि कोटि प्रणिपातम् ||९||
इति संत: श्रीगजाननस्तोत्रम् सम्पूर्णम् || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
bhaktisarita
ॐ श्री गणेशाय नम: | श्री सरस्वत्यै नम: || श्री शिवशंकराय नम: ||
ॐ भम् भम् भोलेनाथाय , हर हर महादेवाय नमो नम: ||
हरि: ॐ || अथ शान्तिप्रदम् श्रीशिवस्तोत्रम् प्रारम्भ: ||
ॐ नमो कैलासपतये | शम्भो साम्ब सदाशिवाय |
ॐ नमो पार्वतिपतये | कृपानिधये महादेवाय ||१||
नमामि त्वां आदिदेवम् | शिवशंकरम् उमापतीम् |
अभयंकरम् महाकालम् | परमामृतम् कैलासपतीम् ||२||
पंचवक्त्रम् त्रिलोचनम् | चन्द्रसूर्याग्नि - नयनम् |
दिगम्बरम् जटाधरम् | गंगाधरम् चन्द्रशेखरम् ||३||
निलकण्ठम् भुजंगभूषणम् | नागयद्न्योपवीतिनम् |
व्याघ्रचर्माम्बरधरम् | भस्म लेपन - सर्वांगम् ||४||
पशुपतीम् नन्दीश्वरम् | भूतपतीम् त्रिलोकेश्वरम |
त्रिशूल - डमरुधरम् | पाशविमोचनम् हरिहरम् ||५||
सूर्यकोटि - प्रतिकाशम् | चन्द्रकोटि - सुशीतलम् |
भक्तवत्सलम् विश्वनाथम् | वरेण्यम् अभयप्रदम् ||६||
रमसे पुरूष-श्रेष्ठरूपम् | अम्बिकागणेशाभ्याम् सहितम् |
सुशोभिते स्वपरिवारम् | स्वायुधवाहनादिना युक्तम् ||७||
मूषकारूढम् गजाननम् | बुद्धिम् सिद्धिम् प्रदम् गणेशम् |
मयूरारूढम् षडाननम् | भक्तिम् विरचितम् कार्तिकम् ||८||
सिंहिकासने-स्थिताम् गौरीम् | बलम् यशम् प्रदाम् अम्बिकाम् |
वृषभा - सस्थितम् विश्वनाथम् |
शान्तिम् मुक्तिम् प्रदम् महेशम ||९||
एतै: सर्वगुणसम्पन्नम् | गुणातीतम् महेश्वरम् |
नमो भम् भम् भोलेश्वराय | सुरासुरै: नमस्कृताय ||१०||
ध्यानासनस्थम् योगेश्वरम् | शंभो - साम्ब – सदाशिवम् |
ईप्सितवर – प्रदायकम् | कृपानिधिम् महादेवम् ||११||
मृत्युंजयम् मोक्षदम् भद्रम् | सर्वात्मकम् सात्विकम् रुद्रम् |
सच्चिदानन्द - स्वरूपम् | एकमक्षरम् ॐ कारम् ||१२||
पुरातनम् परमम् सत्यम् | अव्यक्तम् शाश्वतम् नित्यम् |
अमृतम् प्रशान्तम् अनन्तम् | आदिमध्यान्तम् रहितम् ||१३||
ज्योतिर्स्वरूपम् ओन्कारम् | हृत्पंकजस्थितम् सदाशिवम् |
तस्य ध्यानेन केवलम् | शिवसायुज्यम् आप्नुयात् ||१४||
श्रीरामनारायणकृतम् | यत् शान्तिप्रदम् श्रीशिवस्तोत्रम् |
पापम् तापम् च निवारकम् | परमम् सौख्यम् प्रदायकम् ||१५||
इति श्रीशिवस्तोत्रम् सम्पूर्णम् || ॐ तत्सत् ||
श्रीसदाशिवशंकरार्पणमस्तु || शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
bhaktisarita
ॐ श्री गणेशाय नम: || श्री सरस्वत्यै नम: || श्री जगदंब्यै नम: ||
हरि: ॐ || अथ रिपूशमनम् श्रीजगदम्बास्तोत्रम् प्रारंभ: ||
ॐ नमामि त्वाम् जगदम्बाम् | महाशक्तिम् ह्रीम् कारिणीम् |
पार्वति - अंग भूतानीम् | दुर्गाम् दुर्गती नाशिनीम् ||१||
सुन्दरीम् तेजस्विनीम् | उग्ररूपाम् सिंहवाहिनीम् |
अष्टभुजाम् भयहारिणीम् | अष्टायुधा - शस्त्रधारिणीम् ||२||
महादेवीम् महिषासुर - मर्दिनीम् | सर्व-शत्रु - विनाशिनीम् |
भवानीम् धर्मरक्षिणीम् | त्रिविध - ताप - नाशिनीम् ||३||
आयुरारोग्यौ सौभाग्यप्रदाम् | पुत्रपौत्रादि संपदाम् |
सुखशांति - प्रदायै देव्यै | शिवप्रकृत्यै नमो नम: ||४||
इति श्रीरामनारायण - रचितम् श्रीजगदम्बास्तोत्रम् सम्पूर्णम् |
ॐ जगदम्ब्यै महादेव्यै महाशक्त्यै नमो नम: ||
ॐ तत्सत् || श्रीजगदम्बार्पणमस्तु ||
शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम: || श्री विष्णवे नम: ||
मन:मानसम् तिष्ठति | नारायण: मन्दिरे
तेज:पुञ्जरूपम् तस्य | प्रकाशते अन्तरे ||१||
कर्णौ कुंडले विलसति | सुहास्येन वदनम्
भूषयति चतुर्भुजे | शंखचक्र-गदापद्मम् ||२||
मन्दिरस्य प्रांगने | सुगन्धितम् स्नेहपुष्पानि
नश्यति भकते: उद्याने | कामक्रोध-शल्यानि ||३||
पूजयामि स्नेहपुष्पानि | अर्चयामि तनेन मनेन
इत्ये आत्मन: अन्तरन्गे | विष्णुर्खलु समाधानम् ||४||
इति भक्तिप्रदम् श्रीविष्णुर्ध्यानम् सम्पूर्णम् || ॐ तत्सत् ||
श्रीविष्णोर्पणमस्तु | शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम: || श्री विष्णवे नम: || श्री हरये नम: ||
ॐ नमो नारायणाय नम: || श्री व्यन्कटेशाय नम: ||
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इति मूलमन्त्रम् जपेत् ||
अस्य श्रीविष्णुर्देवताप्रित्यर्थे शुभंकरम् श्रीविष्णुस्तोत्रम् जपे विनियोग: ||
ॐ नमामि त्वाम् नारायणम् | वन्दे विष्णुम् परमात्मनम् |
विश्वाधारम् व्यन्कटेशम् | विश्वशासकम् सुरेशम् ||१||
शेषशायीनम् सर्वसम्पन्नम् | लक्ष्मिकान्तम् रमेशम् |
चतुर्भुजम् बाहौभूषणम् | शंखचक्रगदा - पद्मधारम् ||२||
मनमोहनम् मधुसूदनम् | तुभ्यम् ध्यानम् परमपावनम् |
सुस्मितवदनम् श्यामवर्णम् | मनोहरम् मनरंजनम् ||३||
ध्यानमूर्तिम् मनविहारम् | परमानन्दम् सुखसागरम् |
भक्तानन्दम् भक्तवत्सलम् | पावनम् भगवानम् ||४||
आदिमूर्तीम् सनातनम् परात्परम्| जगन्नाथम् जनार्दनम् |
आदिपुरुषम् पुरुषोत्तमम् | लोकनाथम् सुरोत्तमम् ||५||
विश्वम्भरम् विश्वबीजम् | विश्ववन्द्यम् विश्वराजम् |
विश्वरूपम् विश्वाधारम् |विश्वव्यापकम् विश्वेश्वरम् ||६||
अनन्तम् अविनाशम् | पवित्रम् प्रशान्तम् परंधामम् |
सर्वशक्तिम् जगदिशम् | सर्वसमाविष्ठम् परमेशम् ||७||
सगुणम् गुणनिधिम् गुणवन्तम् | निर्गुणम् गुणातीतम् |
अतुलम् अच्युतम् अजीतम् |शूरवीरम् अपराजितम् ||८||
आरूढे गरुडवाहनाम् |शेषशायीदेवम् विराजे शेषशयनाम् |
विलासे लक्ष्मीऐश्वर्याम् | एतै: सर्वसम्पन्नम् धनंजयम् ||९||
शेषारूढ- विष्णुकान्ताम् | शयने हरिचरणौसेविताम् |
योगनिद्रास्थितम् मोहनम् | कोमलान्गम् प्रसन्नवदनम् ||१०||
मयूरपिच्छ - जडितम् | मुकुट: रत्नर्मन्डितम् |
जटासंभार-विलोभितम् | भक्तप्रिय: परमानन्दम् ||११||
कस्तुरीतिलकम् ललाट-पटलम् |कर्णौ मोत्तिककुण्डलम् |
कमलनयनम् रूपसुन्दरम् | मधुरस्मितम् सुकुमारम् ||१२||
कुंकुमरेखांकित- चरणम् | कमलचरणौ मनभावनम्
मणिकौस्तुभालन्कारम् | वक्षे वैजयंती - पुष्पहारम् ||१३||
श्रीवत्सलांछन - भूषणम् | नाभिपद्मम् ब्रह्मोद्-भवम् |
विमलम् पिताम्बरालन्कारम् | कटिमेखला-सुशोभितम् ||१४||
चतुर्भुजम् बाहौर्भूषणम् | शंखचक्रगदा - पद्मधारणम् |
वैकुंठराजम् गरुडध्वजम् | जगदुद्धारम् महाराजम् ||१५||
नारद- तुंबरस्यौ गायनम् | सकलजगत् - संतोषकम् |
दिननाथम् दयासागरम् | कृपावन्तम् पतितपावनम् ||१६||
भक्तप्रिय: भक्तिरूपकम् | भक्तध्यान: संमोहितम् |
भक्तिप्रियम् भक्तमनविहारम् | भकतानुग्रह-तत्परम् ||१७||
गोविन्दम् गोपालम् | केशवम् माधवम् वासुदेवम् |
दामोदरम् श्रीधरम् | श्रीकृष्णम् कलिमलदहनम् ||१८||
सर्व - आपदा - हर्तारम् | सुखसम्पदा - दातारम् |
सर्वशान्तिकरम् भगवन्तम् | सर्वदेवै: नमस्कृतम् ||१९||
इदम् श्रीरामनारायण-रचितम् | शुभंकरम् श्रीविष्णुस्तोत्रम् |
यस्य पठन्मात्रेण | विष्णुर्देवता प्रसिदती नित्यम् ||२०||
हरते आपदो नित्यम् | मुच्यते सर्वपापेभ्यो |
जीवन्मुक्तो भवेन्नर: | वैकुण्ठलोकम् स गच्छति ||२१||
इति श्रीविष्णुस्तोत्रम् सम्पूर्णम् || ॐ तत्सत् ||
श्रीविष्णोर्पणमस्तु|| शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम:| श्री सरस्वत्यै नम:|| श्री लक्ष्मीदेव्यै नम:||
हरि: ॐ || अथ धनैश्वर्यप्रदम् श्रीमहालक्ष्मीस्तोत्रम् प्रारंभ:||
ॐ नमामि श्रीम् महालक्ष्मीम् | महामायाम् क्लीम् रूपिणीम् |
मंगलाम् क्षीराब्धितनयाम् | नारायणीम् पद्मालयाम् ||१||
कमलाम् कमलासनाम् | कमलात्मजाम् कमलवर्णाम् |
कमलवदनाम् कमलाक्षिनीम् | कमलहस्ताम् कमलमालिनीम् ||२||
सुवर्णमयीम् सुवर्णप्रभाम् | सुवर्णवर्णाम् सुवर्णास्त्रवसनाम् |
सुवर्णकंकणाम् सुवर्णमालिनीम् | सुवर्णलंकार-भूषिताम् ||३||
वैष्णवीम् गरूडवाहिनीम् | शंख - चक्र - गदाधारिणीम् |
कोलासूर - मर्दिनीम् | महादैत्यासूर - विनाशिनीम् ||४||
पाप - ताप – निवारिणीम् | अभयदान - प्रदायिनीम् |
अमलाम् विमलाम् निर्मलाम् | अचलाम् चपलाम् चंचलाम् ||५||
धनैश्वर्ये - सौभाग्यप्रदाम् | सर्व - मांगल्य - संपदाम् |
सुखलाभ - प्रदायै देव्यै | विष्णुकांतायै नमो नम: ||६||
इति श्रीरामनारायण-रचितम् श्रीमहालक्ष्मीस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ||
ॐ तत्सत् || श्री महालक्ष्म्यर्पणमस्तु | शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम: | श्री सरस्वत्यै नम: | श्री महाकाल्यै नम: ||
हरि: ॐ || अथ सद्गुणविकसितम् श्रीमहाकालीर्ध्यानम् प्रारंभ:||
ॐ नमामि त्वाम् महाकालीम् | कालकर्तीम् कालरुपिनीम् |
चराचर - निवासिनीम् | चित्-शक्ति-स्वरूपिनीम् ||१||
काली स्मशान-वासिनीम् | शवासन - विराजिनीम् |
खड्ग-मुण्ड - धारिनीम् | सर्व-शत्रु - विनाशिनीम् ||२||
ललाटे चन्द्र - विराजिनीम् | मुक्तकेशा त्रिनयनीम् |
लल्ललित – रक्तवर्णी - | लम्ब - जिह्वा - प्रदर्शिनीम् ||३||
मुण्डमाला - विभूषिणीम् | कर्णौ बालप्रेत - लम्बिनीम् |
हस्तमाला - मेखलिनीम् | रूप- सुंदरीम् चिरतरूणीम् ||४||
कृष्णवर्णाम् तेजस्विनीम् | प्रसन्नाम् अट्टहासिनीम् |
भुक्ति - मुक्ति - प्रदायीनीम् | त्वाम् चरणौ प्रणमामि ||५||
इति श्रीरामनारायणकृतम् श्रीमहाकालीध्यानम् सम्पूर्णम् |
ॐ तत्सत् | श्रीमहाकाल्यर्पणमस्तु | शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम:|| श्री सरस्वत्यै नम:| | श्री दक्षिणाकाल्यै नम: ||
हरि: ॐ || अथ फलसिद्धिप्रदम् श्रीदक्षिणाकालिस्तोत्रम् प्रारंभ: ||
ॐ नमामि त्वाम् कालिकादेवीम् | आद्य भगवती क्रीम् कारिणीम् |
आद्यशक्तिम् आद्यामनाद्याम् | आद्यमायाम् आद्यविद्याम् ||१||
नित्याम् अजन्माम् अनंताम् | आदिमध्यान्त - रहिताम् |
निराकाराम् त्रिकालातीताम् | निर्विकाराम् त्रिगुणातीताम् ||२||
पंचतत्वेस्थिता - ताराम् | सर्वान्ते स्थिताम् कालिकाम् |
अत: सा प्रसिद्धा | चिद्ब्रह्मरुपीनी: त्रिभुवना ||३||
सर्ववर्णे-समाविता कृष्णवर्णम् | तथा जीवात्मन: विलिता: |
सकल - समन्विता श्यामा | इति निर्गुणा निराकारा ||४||
सकल - जगतधात्रीम् | सृष्टिस्थितीलयादि कालकर्तीम् |
अत: सा प्रसिद्धा | कृष्णवर्णा काली: त्रिजगता ||५||
चैतन्याम् परब्रह्मरूपाम् | सत्-चिदानन्द - स्वरुपाम् |
दक्षिणदिशेस्थित - यम: | पलायते कालिनाम्ना ||६||
तथा कर्मान्ते फल-सिद्धीदाम् | एवम् भक्तायास्तु दक्षिणाप्रदाम् |
अत: सा प्रसिद्धा | कल्याणीम् दक्षिणा - काली: त्रिजगता ||७||
मनकामना - पूर्तिनीम् | सर्वकामार्थ सिद्धीदायिनीम् |
कैवल्यदात्रीम् मोक्षदायीनीम् | दक्षिणाकाल्यै नमो नम: ||८||
इति श्रीरामनारायण-रचितम् श्रीदक्षिणाकालिस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ||
ॐ तत्सत् || दक्षिणाकाल्यर्पणमस्तु ||
शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम: || श्री सितारामलक्ष्मणदेवताभ्यो नम: ||
श्री हं हनुमते नम: || श्रींमत्-हनुमन्त्प्रसाद प्रित्यर्थे
सर्वारिष्टनिवारणार्थ श्रीहनुमानस्तोत्रम् जपे विनियोग: ||
ॐ नमामि त्वाम् हनुमन्तम् | कपिश्रेष्ठम् रामभक्तम् |
पवनात्मजम् केसरीसुतम् | अञ्जनी-गर्भसम्भूतम् ||१||
चंचलम् गगनउड्डानम् | सूर्यबिम्ब-फलसेवनम् |
सकलदेव-पुरस्कृतम् | महाबलिम् भगवन्तम् ||२||
कनकवर्णम् वज्रशरीरम् | पिंगकेशाढ्यम् कुमारम् |
प्रचण्डम् पिन्गलाक्षम् | महाबाहौ महावक्षम् ||३||
मुकुट-रत्नमणिजडितम् | स्वर्णकुंडल-मंडितम् |
सुवर्णकटि-कासोटिम् | मेखला-अलन्कृतम् कटिम् ||४||
वायुवेगम् सकलभुवनगम् [ भीमरूपीम् बजरंगम् |
पर्वतोच्चोटनम् महावीरम् | महाशक्तिम् गदाधरम् ||५||
सुग्रीवसचिवम् कपिवरम् | कुशलम् कपिसैन्यप्राकारम् |
श्रीरामलक्ष्मण - सेवकम् | श्रीरामकथा - नायकम् ||६||
श्रीराम-आज्ञापालनम् | सप्तसमुद्र - निर्लन्घनम् |
श्रीराममुद्रा-प्रदर्शनम् | सीताशोक - विनाशनम् ||७||
रावणस्य गर्वहरणम् | अशोकवन - विध्वन्सनम् |
महादैत्य-निकन्दनम् | त्रिविध-शस्त्र- निवारणम् ||८||
सुवर्णप्रासाद - भन्जनम् | लंकापूरी- विदाहनम् |
द्रोणागिरी- उच्चाटकम् | लक्ष्मणप्राण - प्रदायकम् ||९||
सर्वशत्रु - संहारकम् | सर्वबंध - मोक्षदायकम् |
रावणराज विनाशकम् | श्रीरामराज्यम् प्रस्थापिकम् ||१०||
श्रीरामसन्मुखम् श्रीराममयम् | श्रीरामभक्ति - परायणम् |
श्रीरामसिता - समन्वितम् | हनुमन्तस्य हृदयस्थितम् ||११||
शरणागत - वत्सलम् | भक्तपालन - तत्परम् |
दयानिधीम् शोकहरम् | सर्वसंकट - निवारम् ||१२||
जपन्ति श्रीराम रामेति | ततोपस्थितम् हनुमन्तम् |
समर्थम् संकटमोचनम् | महारिष्ट - निवारणम् ||१३||
शत्रुहरम् दुष्ट- भन्जनम् | महारुद्रम् दैत्यकन्दनम् |
चतुरम् ज्ञानवन्तम् बुद्धिवन्तम् | निर्भयम् जयवंतम् ||१४||
सौख्यकारम् शान्तिप्रियम् | सेवाभावनम् भक्तिप्रियम् |
चिरंजिवम् गुणालयम् | ब्रह्मचारिनम् जितेन्द्रियम् ||१५||
इदम् श्रीरामनारायण- रचितम् | सफलदम् श्रीहनुमानस्तोत्रम् |
य: स्तोत्रम् पठेन्नित्यम् | तेषाम् रक्षति हनुमन्तम् ||१६||
सर्ववश्यतम् लभते जयम् | तस्य नास्ति भयम् तथा |
सर्वग्रह- बलछेदनम् | सर्व - कार्याणि साधनम् ||१७||
इति सर्वारिष्टनिवारकम् श्रीहनुमानस्तोत्रम् समाप्तम् ||
श्रीहनुमन्तार्पणमस्तु || शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ श्री गणेशाय नम: || श्री सूर्यादेवताय नम; ||
अथ आयुरारोग्यप्रदम् श्रीसूर्यस्तोत्रम् प्रारम्भ; ||
ॐ नमामि त्वाम् सूर्यदेवताम् | विश्ववन्द्यम् विश्वेश्वरम्
दिनमणिम् दिनकरम् | दिननाथम् दिवाकरम् ||1||
अनाद्यम् सहस्त्रयुगधारिणम् | सनातनम् आदिदेवम् |
निरामयम् विशुद्धतत्त्वम् | चिद्-रूपम् सर्वभवोद्-भवम् ||2||
गगनलिंगमाराध्यम् | उत्पत्तिरक्क्षा-प्रलयान्तकम् |
द्वादशात्माम् ग्रहपतीम् | जनप्रारब्ध – नियंत्रकम् ||3||
कालमूर्तिम् कालवक्त्रम् | कालरूपम् कालकर्ताम् |
विश्वसाक्षीम् विश्वकर्ताम् | विश्वकर्माम् विश्वधर्ताम् ||४||
अखिल-जगतामात्मस्वरूपम् | सर्वात्मा विश्वात्मा |
सर्वदेवमयो सूर्यात्मा | चराचरात्मा परमात्मा ||५||
तेज:पुञ्जम् तेजोमयम् | ग्रह-नक्षत्र- ताराणाधिपम् |
महातेजाम् दिव्यरूपम् | दिप्तिकरम् जगत्प्रदिपम् ||६||
प्रदिप्तम् अम्बरचुडामणिम् | सहस्त्रान्शुम् किरणोत्करम् |
रविम् आदित्यभास्करम् | वासरकारणम् प्रभाकरम् ||७||
मार्तण्डम् विश्वभावनम् | तपनम् सहस्त्ररश्मिभावनम् |
शीघ्रगम् गभस्तिमानम् | विवस्वानम् मरीचीमानम् ||८||
गगनान्गन-दिपकम् | सृष्टिजीवन - पालकम् |
विश्वतापनम् तमहरम् | भूताश्रयम् कामप्रदायकम् ||९||
कश्यपात्मजम् आदितीनंदनम् | लोहितांगम् रक्तवर्णम् |
भव्यम् प्रचण्डम् अरविंदाक्षम् | विशालम् हिरण्यवर्णम् ||१०||
चतुर्भुजम् श्वेतपद्मव्दयम् | चक्रधरम् अभयहस्तम् |
दैदिप्यमान-मुकुटम् | मकरकुण्डलम् स्वर्णभूषितम् ||११||
कालचक्र-प्रणेतारम् | आरूढम् एकचक्रो सप्ताश्व-रथिनम् |
पदव्दय - विरहितम् | अरूणसारथिम् प्रवीणम् ||१२||
वेदकर्ता वेदपारगाम् | वेदवाहनम् वेदविन्दम् |
सर्वलोक - पितामहम् | सर्वलोक - नमस्कृतम् ||१३||
सर्वमंगल - मांगल्यम् | आयुरारोग्य - विवर्धनम् |
दद्रू - कुष्ठादि- रोगशमनम् | सर्वव्याधि-विनाशनम् ||१४||
मित्रम् रविम् सूर्यम् | भानुम् खगम् पूषम् |
हिरण्यगर्भम् मरिच्यम् | आदित्यम् सविताम् ||१५||
अर्कम् भास्करम् | इति महादिव्यम् व्दादशनामम् |
एतानि प्रात:स्मरणम् | नित्यम् आयुरारोग्यप्रदम् ||१६||
शनैश्वरस्यपिताम् सर्वपापघ्नम् करुणाकरम् पीडाहरम् |
शत्रुभय - विनिर्मुक्तम् | लोक्शोकाप - हर्तारम् ||१७||
पुत्रपोत्र - प्रदायकम् | धनधान्य - वर्धकम् |
अकाल - मृत्युहरणम् | कालेश्वरम् सदा-रक्षकम् ||१८||
इदम् श्रीरामनारायण-रचितम् | पुण्यप्रदम् श्रीसूर्यस्तोत्रम् |
य: स्तोत्रम् पठेन्नित्यम् | सर्वपाप - प्रणाशनम् ||१९||
ग्रहपीडा - निवारणम् | सर्वव्याधि - विनाशनम् |
शरीरारोग्यदम् दिव्यम् | रोगमुक्तो दीर्घायुर्वर्धनम् ||२०||
इति श्रीसूर्यस्तोत्रम् सम्पूर्णम् || ॐ तत्सत् ||
श्रीसूर्यार्पणमस्तु || शुभम् भवतु ||
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
श्रीरामनारायण-विरचितम् | सकलस्तोत्रानि शुभवरप्रदम् |
सकलमंगलमयं देवताः | सदा प्रसन्ना भवन्तु मे ||
विद्यार्थी लभते बुद्धिम् | कार्यार्थी लभते सिद्धिम् |
शरणार्थी लभते अभयम् | सर्वत्रम् लभते विजयम् ||
|| ॐ तत्सत् || शुभम् भवतु || कल्याणमस्तु ||
|| ॐ शान्तिः|| ॐ शान्तिः|| ॐ शान्तिः||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ओम नमो नारायणाय , तव ध्यानम् परमपावनम् ||ध्रु.||
मुकुटम् रत्नमंडितम् ,
मयुरपिच्छ जडीतम् |
मोहन : कमलनयन : , संपन्न: शेषशायी ||1||
वक्षे वैजयंती – पुष्पहार: ,
अलंकारेषु मणि कौस्तुभ: |
कर्णे मौत्तिक - कुण्डले , मधुरस्मित: श्यामवर्ण: ||2||
नाभि पद्मोद्भव ब्रह्म ,
श्रीवत्सलांछन – भूषण: |
चतुर्भुज: बाहो: भूषणम् , शंखचक्रगदा – पद्मधारण: ||3||
विमल: पितांबरालन्कृत:
कमलचरणौ मनभावन: |
यद् स्वरूपम् स्मरणमात्रेन , विष्णु: प्रसीदति नित्यम् ||4||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
नारायण: तिष्ठति | मन:मानस - मन्दिरे ||
तेज:पुञ्जरूपम् तस्य | प्रकाशते अन्तरे ||धृ||
दिव्यमुकुटम् रत्नर्मन्डितम् |
मणिकौस्तुभालन्कारम् ||
भूषयन्ति चतुर्भुजा: |
शंखचक्र-गदापद्मम् ||१||
देवालयस्य प्रांगणे |
सुगंधानि स्नेहपुष्पानि ||
नश्यन्ति भकतस्य उद्याने |
कामक्रोधादि-शल्यानि ||२||
अर्चयामि भक्त्या मनसा |
भावान्जलि: समर्पयामि ||
इत्ये आत्मन: अन्तरन्गे |
विष्णुर्खलु समाधानम् ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
मया कृष्ण: भज्यते | प्रार्थ्यते च वन्द्यते ||धृ||
कृष्णेन प्रेमा विलस्यते | एवम् प्रीति: वितर्यते |
कृष्णेन आनन्दम् विकस्यते | एवम् मोदम् प्रसर्यते ||
कृष्णेन अहम् प्रसीद्ये | एतेन अहम् प्रिण्ये |
कृष्णेन अहम् स्निह्ये | मया कृष्ण: रूच्यते ||१||
कृष्णेन श्यामवर्ण: द्योत्यते | पिताम्बर: विराज्यते |
कृष्णेन शिखालु: आवह्यते | पुष्पमाला धार्यते |
कृष्णेन मधुरम् स्मियते | मोहकम् मूर्ति: शुभ्यते |
कृष्णेन यशोदा ईक्षते | यशोदया कृष्ण: रम्यते ||२||
कृष्णेन वनम् गम्यते | मधुरम् वेणु: नाद्यते |
कृष्णेन मधुरम् गीय्यते | एवम् सुंदरम् नृत्यते |
कृष्णेन राधा प्रीयते | एतेन सर्वाणि क्रीड्यन्ते |
कृष्णेन सर्वाणि तुष्यन्ते | सर्वाणि कृष्ण: मुह्यन्ते ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
देवकी – नंदनम् | राधाया: मोहनम् |
सुंदरम् सगुणम् | नमामि तम् कृष्णम् ||धृ.||
पितांबरम् विराजति
शिखालुम् आवहति |
पुष्पमालाम् धारयति , अहम् वंदे कृष्णम् ||१||
श्यामवर्णम् द्योतते
मधुरम् स्मयते |
यशोदाम् ईक्षते , सा लालयते कृष्णम् ||२||
मधुरम् गायति
सुंदरम् नृत्यति |
वेणुम् नादते , राधा लभते कृष्णम् ||३||
वनम् गच्छति
सर्वै सह क्रीडति |
सर्वान् तुष्यति , ते पश्यन्ति कृष्णम् ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
गोपालम् नमो गोविंदम् | वंदे तव चरणौ मुकुंदम्
श्रीकृष्णम् नमो गोविंदम् | वंदे तव चरणौ मुकुंदम् ||धृ.||
श्यामलवर्णम् मनोहरम् |
शिरसि मुकुटम् कटौ पितांबरम्
वक्षे शोभते सुपुष्पहारम् | नृत्यंन्ति वनचरा: वेणोर्नादेन् ||१||
यशोदाया: गुणी-नंदन:
राधाया: त्वम् मनमोहन:
स्नेहमय: गोकुलरमण: | सृजति सर्वेषाम् अत्यानंदम् ||२||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
सुंदरस्य कृष्णवर्णस्य हरे: दर्शनाय प्राण: हृदि क्षुभ्यति ||धृ.||
मुरल्या: मधुरनादेन कर्णौ तुष्टत:
प्रतनोति मम गोविंद: ||१||
मधुरहास्येन मनमोहन: मुह्यति
स्थैर्यम् चित्ते न बोधति ||२||
स्नेहभावम् उदयति आनंदाश्रु द्रवति
तव दर्शनाय उत्ताम्यति ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
गोपाल: वनम् आगच्छति |
गोपानाम् सम्मेलनम् रचयति ||धृ||
गोपा: वनम् प्रतिगच्छन्ति |
गोपिकाभि: धेनुभि: सार्धम् |
सम्मिलन्ति यमुनाया: तीरम् | मृगयन्ते ते गोपालम् ||१||
वेणो: मधुरम् नादम् |
वने सर्वत्रे प्रसरति |
मोदन्ते गोपा: धेनव: | गोपालाय धावन्ति ||२||
तानि ईक्षन्ते गोपालम् |
लावण्य-रूपेन भूषयति |
गोपा: गोपाले मूह्यन्ति | गोपाल: वने नृत्यति ||३||
गोपालम् परित: गोपा: |
गायन्ति च नृत्यन्ति |
इदम् स्नेह-सम्मेलनम् | सर्वेषु चित्तेषु माद्यन्ति ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
नमामि त्वाम् महाकालीम् |
कालकर्तीम् कालरुपिणीम् |
चराचर - निवासिनीम् | चित्-शक्ति-स्वरूपिनीम् ||धृ||
काली स्मशान-वासिनीम् |
शवासन - विराजिनीम् |
खड्ग-मुण्ड - धारिनीम् | सर्व-शत्रु - विनाशिनीम् ||१||
ललाटे चन्द्र - विराजिनीम् |
मुक्तकेशा त्रिनयनीम् |
लल्ललित – रक्तवर्णी – लम्ब - जिह्वा - प्रदर्शिनीम् ||२||
मुण्डमाला - विभूषिणीम् |
कर्णौ बालप्रेत - लम्बिनीम् |
हस्तमाला - मेखलिनीम् | रूप- सुंदरीम् चिरतरूणीम् ||३||
कृष्णवर्णाम् तेजस्विनीम् |
प्रसन्नाम् अट्टहासिनीम् |
भुक्ति - मुक्ति - प्रदायीनीम् | त्वाम् चरणौ प्रणमामि ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
भवति अधीरम् चित्तमामकम्
अयी श्यामे ! आगच्छ सत्वरम् ||
तवचरणवरणकृतधारण हृदये
भुवनमोहिन्यै स्मरामि दिनरात्रे
भक्तवत्सले , वत्सप्रिये शृणु
शृणु मातु: ! आक्रंद मामकम्
अयी श्यामे ! आगच्छ सत्वरम् ||
भवति असह्यम् चरणवियोगम्
योगसुयोगिनी योगविधात्रे
आतुरप्राण: व्याकुलमनसा
कृततवस्तव हे सदादयार्द्रे
भववरदा देहि पदरजेषुरति
शृणु: मातु: ! आक्रंद मामकम्
अयी श्यामे ! आगच्छ सत्वरम् ||
भवति अधीरम् चित्तमामकम्
अयी श्यामे ! आगच्छ सत्वरम् ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
आगच्छ शेग्रामम् ,
पश्य साधुम् गजाननम् |
योगीराजनम् वंदनम् , मम स्वामी गजानन: ||धृ.||
शेग्रामम् पुण्यक्षेत्रम् .
भक्तानाम् श्रद्धास्थानम् |
करोति भक्तकल्याणम् , मम स्वामी गजानन: ||१||
मंदिरे महनीया मूर्ति: ,
परब्रह्म – साक्षात्कार: |
नश्यति भव - बंधनम् , मम स्वामी गजानन: ||२||
'गण गण' दिव्यमंत्रम् ,
तस्मै शास्त्राधारम् |
सगुणकार: निर्गुण: , मम स्वामी गजानन: ||३||
समर्पिते तनु मन: ,
आविर्भवति परित्राणाय |
उद्धरति पतितजीवनम् , मम स्वामी गजानन: ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
संत: श्रीगजाननम् , शेगाव-क्षेत्रे निवासितम्
नित्यानंद-स्वरूपं, मम हृदय-कमले राजितम् ||१||
गण गण गणात बोते , गण गण गणात बोते
ईति अद्भूतं दिव्य-मंत्रम् , भज भज सदोदीतम् ||२||
ध्यानं साधुं गजाननम् , परं पावनं भगवंतम्
गण गण गणात बोते , मंगलमयं मंत्रं जागृतम् ||३||
परमहंसं सच्चिदानंदम् , जितेन्द्रियं ध्यानरतम्
दयासागरं गुणवन्तम् , आनंद-मूर्तीम् अवधूतम् ||४||
भक्तप्रियं जनकल्याणम् , उदारं करुणाकरम्
धावसि जनरक्षणार्थम् , निर्विघ्नं अभयंकरम् ||५||
गहन-वर्तंन: सिद्धेश्वरम् , त्वं परब्रह्मं सनातनम्
सर्वेशं तव अद्भूतकृत्या: , महिम्नः तव महानम् ||६||
निर्जलं करोसि जलमयम् , ओंकारेश्वरे तारसि जनम्
विविधरुपे त्वं अवतरसि , भवति भक्तभाव: कारणम् ||७||
सर्वहितचिन्तकं करुणामयम् , तत्परं पतित-उद्धारकम्
धैर्यं च स्थैर्यं प्रदायकम् , परमामृतं नाम: बंधमोक्षकम् ||८||
मंगलमयं भक्तवत्सलं , कुरु कल्याणं विपदाया: मुक्तम्
शरणं तव पदकमलौ , कुर्वन्ति कोटि कोटि प्रणिपातम् ||९||
इति संत: श्रीगजाननस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ||
|| ॐ तत्सत् || शुभम् भवतु || ॐ शान्ति: ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
विठ्ठल विठ्ठल भज भज विठ्ठल
भक्तजनवत्सल भागवते ||१||
चलचल पंढरीम् वैष्णवनगरीम्
स्मर नामसुमन्जरी भागवते ||२||
भागातटे वस कुरू निशिजागर
शृणु संकीर्तन भागवते ||३||
त्यज भवसंगति तर भवतरणि
वर देवशिरोमणि भागवते ||४||
मुखमण्डलशोभन भूषितकुंडल
श्यामलमोहन भागवते ||५||
श्रद्धानतभव भवशरणागत
कुरु प्रणिपात: भागवते ||६||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
आगच्छन्ति वारकर्तृणि ,
पंढरपूर - नगरम् |
नृत्यन्ति गायन्ति आतुरौ ,
विठुगुणानि मधुरम् ||
साधुसन्त: भक्तिविव्हल: ,
लभन्ते हरिदर्शनम् |
देहभावा: विस्मरन्ति ते ,
पश्यन्ति हरिमुखम् ||
‘श्रीहरी विठ्ठल जयजय विठ्ठल’,
कुर्वन्ति गर्जनम् |
चंद्रभागातटे जाग्रिया ,
कुर्वन्ति कीर्तनम् ||
मातु: गेहम् भक्तानाम् यद् ,
तदस्ति सुखसागरम् |
भौ वैष्णवजन कुरु स्वीकरणम् ,
मम कोटि प्रणिपातम् ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ
एकम् मन्यते अस्ति अस्ति ,
अन्यव्दिरुध्यते तस्यास्तित्वम्
कथयति तमेकम् ब्रह्मनिर्गुणम् ,
अन्यदिक्षते तम् सगुणम् ||१||
एकम् बोधते मूर्तिस्वरूपम् ,
अन्यस्मै सो ज्योति:रूपम्
सर्वेषु खलु एकेश्वर: ,
भिन्ना: भवति विभिन्नविचार: ||२||
कुरु स्थिर: मन: योगेन ,
अविचारम् अपसरति तेन
यस्य मनसि भवति यद् भाव: ,
तद्रूपेन अधिवसति देव: ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
हरि: हृदि ममाश्रितम्
एवम् चित्ते सन्निविष्टम्
चांत:शरीरोपजातम् प्रकाशेन हर्षोपस्थिष्टम् ||धृ.||
धन्य: सांप्रतदिनम्
सगुणरूपम् विकसितम्
अंतर्मने समाधानम् हरिदर्शनेन संतुष्टम् ||१||
वाचा मनसा कायेन
हरिचरणौ सर्मपितम्
वाचि गुणानि स्तवनेन हृदि ध्यानम् विहरतम् ||२||
रूपम् लोचने स्थितम्
पादौ मनसि विराजितम्
देहभावम् विस्मरणम् तव स्थानम् आविष्टम् ||३||
अहम्-सोहम्- भावम् निमीलतम्
एकरूपम् आविर्भवति
सर्वत्रम् सुखसंपन्नम् जीवनानंदम् प्रसीदति ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
आगच्छ देव- दर्शनार्थम्
सुन्दरम् देवायतनम् |
द्रष्टुम् तस्य स्वरूपम्
मनसि खलु समाधानम् ||धृ.||
वाचा मनसा कायेन
त्वत्स्थाने समर्पणम् |
गातुम् गुणगानम्
रमते मनसि तस्य ध्यानम् ||१||
तद्रूपम् श्रयत: लोचने
अधिवसति मन: तस्य चरणे |
देहभावम् विस्मरणम्
तद्रूपम् तस्य निजस्थानम् ||२||
विलयति अहम्-त्वम्- भावम्
आविर्भवति एकतत्वम् |
प्रसादम् मोदसंपन्नम्
भवति सार्थकम् जीवनम् ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
त्वमेव दाता | कुरु मे मंगलम्
याचकोSहम् | विकस मम जीवनम् ||धृ.||
त्वमेव पिता | पाहि धर्मपालनम्
पुत्रकोSहम् | विकस मम जीवनम् |
त्वमेव माता | देहि स्नेहभोजनम्
बालकोSहम् | सान्त्वय मम जीवनम् ||१||
त्वमेव गुरु: | उपदिश सुशिक्षणम्
छात्रोSहम् | विकस मम जीवनम् ||
त्वमेव पावन: | कुरु मे उद्धारम्
पतितोSहम् | पुनीष्व मम जीवनम् ||२||
त्वमेव देव: | देहि वरदानम्
भक्तोSहम् | विकस मम जीवनम् ||
त्वमेव परमात्मा | देहि माम् एकत्वम्
जीवात्माहम् | सन्तुष्य मम जीवनम् ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
(केशवा माधवा, तुझ्या नामात रे गोडवा)
(स्वर - सुमन कल्याणपूर , गीत - रमेश अणावकर ,
संगीत - दशरथ पुजारी , राग - दुर्गा , पहाडी)
केशव ss माधव ss , मधुरिमा भो: नाम्नि तव ||धृ.||
त्वया समानम् त्वम् हि देवो ,
नास्ति ते केभ्य: असूया |
पदोपदानि विपदाया: , रक्षसि मानवान् ||१||
भक्तये त्वम् स्पृहयसि ,
गोपैर्सह तटे यमुनाया: |
नन्दस्य धेनव: त्वम् वहसि , गोकुले यादव ss ||२||
वीरधनुर्धर - पार्थस्य कृते ,
धारयसि करे चक्रसुदर्शनम् |
विकर्षसि रथम् पांडवानाम् , निष्काससि कौरवान् ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
(रूप पाहतां लोचनीं, सुख झाले वो साजन- संत ज्ञानेश्वर)
(स्वर- आशा भोसले, संगीत - सी. रामचंद्र, चित्रपट – श्री
संत निवृत्ति-ज्ञानदेव. स्वराविष्कार - पं. भीमसेन जोशी)
रूपम् नेत्राभ्यां अवलोकेन , सुखम् संभवति सखे |
स एव विठ्ठल: उत्तम: , स एव माधव: उत्तम: |
नैकसकृतानाम् संचितेन , विठ्ठलाय रूचि: संपद्यते |
पिता य: रखुमादेव्यार्पति: , समस्त सुखस्य सागर: ||
(सुंदर ते ध्यान, उभे विटेवरी - संत तुकाराम)
(स्वर - लता मंगेशकर , संगीत - श्रीनिवास खळे)
सुंदरम् इदम् स्वरूपम् इष्टिकायाम् तिष्ठति
करौ उपन्यसति , कटितटे ||१||
वक्षे तुलसीमाला
धारयति पितांबरम्
रोचते निरंतरम् , इदम् स्वरूपम् ||२||
दिव्ये मकरकुण्डले
कर्णयोर्प्रकाशेते
कण्ठे विराजते , कौस्तुभमणीम् ||३||
तुकाराम: वदति
तस्याखिलम् सुखम्
प्रियम् श्रीमुखम् , अवलोकयते ॥४॥
shreeram kakade bhaktigitॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
(तीन शीरे सहा हात, तया माझा दंडवत - संत तुकाराम)
त्रिशिरम् षडभुजाधरम्
तम् करोति प्रणिपातम् ||१||
स्कंधे भिक्षावस्त्रम् सन्मुखम् श्वानम्
नित्यम् जान्हवीनद्याम् स्नानम् ||२||
शिरसि शोभते कचभारम्
अंगे भस्मलेपनम् सुंदरम् ||३||
शंखचक्रगदा: हस्तेषु
पदयो: पादुके गर्जत: ||४||
तुकाराम: वदति दिगंबरम्
प्रणाम: तम् देहरूपम् ||५||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
(लहानपण दे गां देवा, मुंगी साखरेचा रवा - संत तुकाराम)
(स्वर - पं. कुमार गंधर्व)
यच्छ हे देव अनुजीविनम्
इव पिपीलिकाम् शर्कराकणम् ||१||
ऐरावत: विशालम् मृगरत्नम्
तमपि बाधते अंकुशताडनम् ||२||
यस्य जीवने श्रेष्ठत्वम्
तम् दु:खम् अतिकठीणम् ||३||
अवगच्छ वदति तुकाराम:
भव लघुजनेषु लघुत्तम: ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
(जाऊं देवाचिया गांवा, देव देईल विसावा - संत तुकाराम)
(स्वर - उषा मंगेशकर , संगीत - अण्णा जोशी)
गच्छाम देवस्य ग्रामम् ,
यच्छेत् देव: विश्रामम् ||१||
कथयाम देवाय सुखदु:खम् ,
परिहरेत् देव: क्षुधाम् ||२||
निक्षिपाम देवे भारम् ,
देव: सुखस्य सागरम् ||३||
आश्रयाम देवम् सदैवम् ,
वन्दित्वा तौ चरणौ ||४||
तुकाराम: वदति वयम् बालका: ,
अस्य देवस्य अतिप्रिया: ||५||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
(तूं माझी माउली, मी वो तुझा कान्हा - संत नामदेव)
त्वम् मम जननी, अहम् तव बालक: |
देही माम् स्नेहपानम् भो: पांडुरंग ||१||
त्वम् मम धेनु: , अहम् तव वत्स: |
न उपेक्षस्व पानम् भो: पांडुरंग ||२||
त्वम् मम हरिणी , अहम् तव शावक: |
नाशय भव बन्धनम् भो: पांडुरंग ||३||
त्वम् मम पक्षिणी , अहम् तव अण्डज: |
देहि माम् भक्ष्यम् भो: पांडुरंग ||४||
नामदेव: वदति , भव भक्त्या: वल्लभ:
स्थित्वा परिपालयस्व पश्चातग्रत: ||५||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
(हरि प्राप्तीसी उपाय, धरावे संताचे ते पाय - संत एकनाथ)
हरिप्राप्तये उपाय:
नम साधो: तौ चरणौ ||१||
तेन सिध्यन्ति साधनानि
नश्यन्ति मनस: बंधनानि ||२||
साधुम् विना नास्ति प्राप्ति:
इति वेद: विवृणोति ||३||
जनार्दनी - एकनाथ: कथयति
संत: कुर्वन्ति इच्छापूर्ति: ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
(विठो माझा लेकुळवाळा, संगे लेकुरांचा मेळा - संत
जनाबाई) (गायक : आशा भोसले)
मम विठ्ठल: बालवत्सल: , तेन सार्थम् बालकानाम् मेल:||१||
तस्य स्कंधे एष: निवृत्ति: ,
सोपानस्य करम् गृह्णति ||२||
चलति पुरत: ज्ञानेश्वर: ,
पश्चात् मुक्ताई सुंदरा ||३||
सक्थिनि गोराकुंभार: ,
चोखाजीवौ तेन समम् ||४||
बंका: कटितटस्य उपरि ,
नामदेव: कनिष्टिकाम् धरति ||५||
जनी वदति भो: गोपाल ,
रचयति भक्तानाम् उत्सव: ||६||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
(रत्नजडित सिंहासन, वरी शोभे रघुनंदन - समर्थ रामदास स्वामी)
रत्नजडित - सिंहासने , रघुनन्दन: राजते ||
सीतामाता वामभागे ,
जगत्-जननी विद्यते ||
दक्षिणे भवति लक्ष्मण: ,
पुरतो अंजनीनंदन: ||
भ्रातरौ भरतशत्रुघ्नौ ,
द्वेपक्षे धुनोत: चामरौ ||
नल: नीलर्जाम्बुवंत: ,
सुग्रीव: बिभीषण: च भक्ता: ||
देहर्मती अवगच्छत: नान्यौ ,
दास: परिष्वजसे रामचरणौ ||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
गजानना गणराया , मंगलमूर्ती मोरया ||धृ.||
शिवप्रिय गौरिसुता , विद्यापती बुद्धिदाता,
विघ्नेश्वरा विनायका , मंगल गणनायका
देई मज कृपाछाया , वंदितो मी तुझ्या पाया ||१||
कार्यारंभी अग्रपूजीता , कार्यसिद्धि सफलता,
सर्वविघ्न विनाशका , सर्वसुख प्रदायका
तारी माझी मोहमाया. वंदितो मी तुझ्या पाया ||२||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
यशोदेचा बाळ, गोजिरा गोपाळ
सुगंधित पुष्पमाळ, शोभवी कंठी ||धृ.||
मोहक हा गवळी , मूर्ती त्याची सावळी
वेड लावी गोकुळी, चित्तचोर ||१||
या ग या सखया , ह्याचे संगी खेळूया
अंगसंगे रंगु या, ह्याचे गुणी ||२||
सुंदर सगुण , पाहुनी हे ध्यान
हरपले माझे मन. तुझीया ठायी ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
गोपाळा जय गोविंदा , पायीं वंदन तुज मुकुंदा
श्रीकृष्णा जय गोविंदा, पायीं वंदन तुज मुकुंदा ||धृ.||
सावळे सुंदर रूप मनोहर , शिरी मुकुट कटी पितांबर
वक्षी शोभे नाना पुष्पहार, डोले वनचर वेणू नादा ||१||
यशोदेचा नटखट कान्हा , राधेचा तु मनमोहना
प्रेमागारा गोकुळरमना, देई भक्तिभाव मना सदा ||२||
भक्तीची नदी वाही झुळझुळ , बान्सुरी तुझी गुंजे सर्वकाळ
हृदयानंदा, प्रेमाचा कल्लोळ, भक्तिभावा रंगी या छंदा ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
सावळा सुंदर पाहण्या हरी
कासावीस जीव झाला उरी ||धृ.||
वाजव मुरली, माझ्या गोविंदा
भरू दे कानीं, मंजुळ नादा ||१||
वेधीयले चित्त, मन मोहना
चैन वाटेना, आता मना ||२||
दाटियला भाव, पाझारी या नयना
आतुरली राधा, तुझीया दर्शना ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
सावळा तो हरी, यशोदेचा कान्हा
मोही सकल मना सदा, मोही सकल मना ||धृ.||
चरण्या साठीं गाई बछडे, कान्हा नेई वना
हंबरणीं बागडनीं त्यजुनी, न्याहाळी त्या कान्हा
बासरीच्या मधुर नादी, विसरी तृणखाणा ||१||
बासरीच्या मंजुळ नादे, रंगे बालगोपाळ
सजवी त्या नटवरा, घालुनी पुष्पमाळ
नृत्य करी घालूनी फेर, मध्ये उभा कान्हा ||२||
बासुरीचा धुंद नाद, घुमे गोकुळांत
विसरुनी कामधाम, सर्व रंगी ध्यानात
विरही राधा धावे वना, रंगे रास मोहना ||३||
रासक्रीडा रचुनी वना, नाचे सर्व धुंद
होती सर्व कृष्णमय, उपजे सर्व स्वानंद
राधे कृष्ण मनमोहना, रंगला या जीवना ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
धन्य तो आगळा, वनी रंगला गोपी मेळा
विसरला देहभाव, रंगु या गोकूळा ||धृ.||
पितांबर नेसूनी, मोरपीस धारूनी,
बासरी घेऊन कान्हा, जाई वनी |
बासुरीचा मंजुळ नाद, घुमला वनात,
गोपी मनी आनंदित, पाहती गोपाळा ||१||
गोपी पाहुनी दंग, नाचे तो श्रीरंग,
नाचे वनी चराचर, उधळीत रंग |
सुरताल रंगण्या वनी, गायी हंबरती,
गोपी धुंद नाचती, रंगला तो सोहळा ||२||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
मन्मानस मंदिरात उभा पंढरीनाथ |
तेज:पुंज रूप त्याचे फाके प्रकाश आंत ||धृ.||
पागोटे शिरावर, गळा तुळशीहार
भुलवी प्रेम-मुद्रे ठेवूनी कर कटावर ||१||
मंदिरी प्रांगणांत, प्रेमपुष्पें सुगंधित
नाही कामक्रोध काटें भक्तीच्या बगिच्यात ||२||
प्रेमपुष्पें आर्पून, भक्तिभावे पूजीन
ध्यानी मनी अंतरी विठ्ठल हेचि समाधान ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
धन्य पुंडलिक, ध्यास ठेवी पांडुरंगे
मायबाप सेवासंगे, रातदिन ||धृ.||
देवासी तिष्ठत, उभा केला विटेवर
भुलला तो सर्वेश्वर, वृंदावन ||१||
धन्य झाला भक्त, झाले सार्थक जीवन
मूर्ति पाहतां सगुण, समाधान ||२||
तोचि हा विठ्ठल, भक्तिप्रिय दिनानाथ
सर्व भक्तांचे दैवत, अंतर्मन ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
अगा पांडुरंगा माझ्या जिवलगा |
रंगु दे माझ्या मना , तुझिया रंगा ||धृ.||
विटेवरी उभा , चैतन्याचा गाभा
रंगु दे माझ्या मना , श्रीमुखाची शोभा ||१||
विठोबा सावळा , तुळशीहार गळा
रंगु दे माझ्या मना , भक्तीचा सोहळा ||२||
हेचि गां मागणी , विठो तुझ्या चरणीं
रंगु दे माझ्या मना, तुझ्या नामस्मरणीं ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
युगे अठ्ठावीस, विठेवरी उभा
चैतन्याचा गाभा, पंढरपुरी ||धृ.||
मस्तकी मुगुट, पितांबर कटी
चंदनाची उटी, अंगा वरी
कर्णी ती कुंडले, गळा तुळशीहार
सावळा सुंदर, सर्वापरी ||१||
शोभले मस्तकी, तिलक कस्तुरी
शेला खांद्यावरी, जरतारी
ठेवियले कर, दोन्ही कटावरी
हास्य मुखावरी, मनोहारी ||२||
भक्तिचा भुकेला, तो हा जगजेठी
धांवे भक्तांसाठी, पाहीं परोपरी
विठ्ठल भजनी मन होता दंग
जीवनी सुगंध, तोचि भरी ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
विठ्ठला s s , आलो तुझ्या दारीं
पंढरीनाथा, दर्शन तुझेs सुखकारी ||ध्रु.||
सांवळे सगुण रूप, उभा तूं विटेवरी
तुळसीहार गळां, शोभें कर कटींवरीं ||१||
नाम तुझे गोड़, गोड़ तुझे रूप
विठ्ठला पांडुरंगा, तुचिं मायबाप ||२||
तुझ्या ठायीं माझा, जीव रे रमला
तुझ्याविन आता, कोण तारीं मजला ||३||
पुंडलिका साठीं, धावला या जगीं
तुकाराम नामदेव, तुझ्या पायीं रंगीं ||४||
संतांची ही वारीं, रंगली चंद्रभागे तीरीं
ऐका हो ऐका गजर, राम कृष्ण हरी ||५||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
विठो सुंदर सावळा
फुलविण्या भक्ति मळा, उभा राऊळा ||धृ.||
वैजयंती हार गळा
कंठी शोभे मोतीमाळा
लावितो भक्तांना लळा, जीवी उमाळा ||१||
येता संत गोतावळा
नाचती गाती सकळा
रंगतो जगी आगळा, भक्ती सोहळा ||२||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
संतजनीं पांडुरंगे, गीत जे गाइले
तेच गीत जनींमनीं, अभंग राहिले ||धृ.||
विटेवरी जगजेठी, तेज फाके रविकोटि
आतुरले संत भेटी, नाचे चंद्रभागे काठी |
करीत नाम गजर, नामांत रंगले
तेच गीत जनींमनीं, अभंग राहिले ||१||
गाता विठ्ठलाचे नाम, लोळे माया मोहकाम
विठ्ठल पायीं चारीधाम, दुजा नाही सुखधाम |
आनंदी सुखसोहळा, भजनी रंगले
तेच गीत जनींमनीं, अभंग राहिले ||२||
एकध्यास अंतर्मन, विठ्तासी समर्पण
मिळे त्यासी भक्तिदान, भक्तिभावे स्फुरे गान |
तोचि भक्तिभाव ओठीं, गीतात रंगले
तेच गीत जनींमनीं, अभंग राहिले ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ये रे शेगांवीला, पाहूं संत गजानन
योगीराजासी वंदन, माझा स्वामी गजानन ||धृ.||
शेगांव ही पुण्यभूमी, भक्तांचे श्रद्धास्थान
करितो भक्तांचे कल्याण, माझा स्वामी गजानन ||१||
मंदिरी वंदनीय मूर्ती, परब्रह्म साक्षात्कार
तोडी संसार-बंधन, माझा स्वामी गजानन ||२||
'गण गण' मंत्र थोर, त्यासी शास्त्राधार
सगुणाकर निर्गुण , माझा स्वामी गजानन ||३||
समर्पिता तन मन, धाऊनी करी रक्षण
उद्धारितो पतित-जीवन, माझा स्वामी गजानन ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
शेगावीच्या महान संता, जय गजानना,
स्वामी जय गजानना,
धन्य तुझा अवतार मोहिं, आम्हां भक्तजना ||धृ.||
चमत्कारी, तूं अवलिया, भुलवीं मनमोहना,
कळेना मना, गहन वर्तना, ब्रह्म सनातना ||१||
जलमय केलें निर्जलासी, धावसी जनकल्याणा,
जळत्याखाटीं, तुला बघुनीं, दांभिक आला शरणा ||२||
ओंकारेश्वरीं भक्ततारितां, आली नर्मदा तंव दर्शना,
सिध्देश्वरा हे सर्वेशा, नमन करीं, तंव चरणा ||३||
दर्शन देसीं, भिन्न रूपां, भक्तांची जशी भावना,
परमहंसा श्री विठ्ठला, भरला जगीं संपूर्णा ||४||
गणगण गणात, बोते या मंत्रा, ध्यातों आम्हीं मना,
ओंवाळुनीं आरती, करितों तुज वंदना ||५||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
शोभे सिंहासनी, ध्यानी मनी |राजा आत्माराम माझा धनी ||धृ.||
धनीच्या स्वाधीन, तन मन
सर्व देह कर्म, समर्पण
पवित्र भावना, सदा मनी | राजा आत्माराम माझा धनी ||१||
हरले विकार, कुविचार
सरली वासना, पाप दूर
वसे सुखशांति, सदा मनी | राजा आत्माराम माझा धनी ||२||
सदा माझी मती, धन्याप्रती
मुखी नाम जप, रूप चित्ती
बहरली भक्ति, सदा मनी | राजा आत्माराम माझा धनी ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
विश्वरूप दर्शन घडले, चराचरी देव उमजले ||धृ.||
आभाळा एवढी तुझी छाया
आम्हां सर्वावरी तुझी माया
प्रकाशिता आभा तुझी राया, चारी दिशा सौख्य पसरले ||१||
मंद हवेचा मंजुळ नाद
वृक्षीं सळसळ देई साद
खळखळ वाहे नदी धुंद, जळीतळी हर्ष उमलले ||२||
संगीत पक्षीं किलबिलती
सुगंध पुष्पें दळवळती
ठायीठायी भाव विलसती, तयापायी चित्त हरविले ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
येरे ये ईश्वरा, दावी तुझे पाय ||धृ.||
नशीबी उपेक्षा, कोणी नाही आता
तुच मातापिता, बहिणबंधु चुलता
लेकरूं मी तुझे, संभाळ वो माय
येरे ये ईश्वरा, दावी तुझे पाय ||१||
नको मज कांही, नश्वर संपत्ती
देई माझे मनी, सदा तुझी भक्ती
तुम्ही माझे स्वामी, उणे मला काय
येरे ये ईश्वरा, दावी तुझे पाय ||२||
गोड तुझे रूप, राहो ध्यानी मनी
मुखी तुझे नाम, रंगो माझे जीवनी
हंबरी वासरूं, धांव घेई गाय
येरे ये ईश्वरा, दावी तुझे पाय ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
सदा माझे ठायी, जडो तुझाच छंद |
प्रगटो परमानंद, याचे देही ||धृ.||
तुझिया कारणे, जीवाची चेतना
बुद्धीची चालना, करते देही ||१||
हृदयाचे ठोके, वाजे या उरी
श्वासाची बांसरी, साथ देई ||२||
रम्य ते सूर, ताल मनी धरी
नाद करी शरिरी, तुझ्या ठाई ||३||
ध्यानी मनी देही, जीवींच्या जीवना
तुझी आराधना, ऐसी राही ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ठेवा त्याची जाण, तोचि करी कल्याण |
सांगती संतजन, सकळ जनाशीं ||धृ.||
ठेवा ध्यानी सत्ता
तोचि एक कर्ता
आणिक करविता, उमजा मनाशीं ||१||
ठेवा भक्ति भाव
पाझरी प्रेम प्रवाह
दूर नेई काममोह, तळीं सागराशीं ||२||
ठेवा त्याचे ज्ञान
निरवी तो अज्ञान
करिल सज्ञान, विवेक बुद्धिशीं ||३||
ठेवा त्यासी ध्याना
नित्य करा प्रार्थना
कृपाळु हा राणा, तारक तुम्हासीं ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
नारायणा केशवा , माधवा वासुदेवा |
योग तुझा घडावा हाचि प्रसाद द्यावा ||धृ.||
तुझे रूप माधवा, मोही मज केशवा
ओढ लागली जीवा, सत्वरी धाव देवा
नारायणा केशवा , माधवा वासुदेवा ||१||
डोळी तुम्हा पहावा, कानीं तुम्हा ऐकावा,
वाचे तुच वदावा, सदा तूची स्मरावा
नारायणा केशवा , माधवा वासुदेवा ||२||
नलगे काही मेवा, घडो तुझीच सेवा ,
भक्त मी तुझा देवा, चरणी ठाव द्यावा
नारायणा केशवा , माधवा वासुदेवा ||३||
माझ्या या भक्तिभावा, तुझा राहो ओलावा,
लवकरी तूं यावा, तुच आता विसावा
नारायणा केशवा , माधवा वासुदेवा ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
धन्य आजी दिन, झाले हरिदर्शन
मना झाले समाधान, पाहतां रूप सगुण ||धृ.||
काया वाचा मन,
केले हरि अर्पण
मुखी गातां गुण, मनी रंगी तुझे ध्यान ||१||
रुपी गुंतले लोचन
पायीं स्थिरावले मन
तुझ्या ठाई लीन, हरपले देहभान ||२||
विरले मी-तूं- पण
गवसले एकपण
बहरले जीवन, सर्वत्र सुख-संपन्न ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
मुखी तुझे नाम, रूप राहो चित्ती
संतांची सांगती, हीच घडो भक्ती ||धृ.||
ताप आणि दु:ख, पाप दुराचार
वासना विकार, ठेवी सदा दूर |
आवर लोचना, परस्त्री वासना
क्रोधव्देष बुद्धि, अर्पली चरणा |
घरदार संपत्ति, धनाची आसक्ती
उपजी आपत्ती, लावी घोर चित्ती ||१||
काया वाचा मन, कर्ण व नयन
कर व चरण, कर्म समर्पण |
आलो मी शरण, सोडी ना चरण
ऊद्धार या पापी, वा देई मरण |
सदा माझी मती, राहो तुजप्रती
मनी तुझी प्रिती, हीच सुखशांती ||२||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
आरती गुणवंता, अहो कुर्लीच्या संता
गुणातीता गुणाधारा, पायीं ठेवितो माथा ||धृ.||
सात्विक कृष्ण-पिता
लक्ष्मी करुणा-माता
पेरीला भक्तिभाव, विठ्ठलभक्ती कुलवन्ता ||१||
निर्मल सदाचारी ,
आत्मज्ञानी साक्षात्कारी
फुलविला भक्तिमळा, धन्य झाला संसारी ||२||
पंढरीचा वारकरी ,
भजनी वाजवी एकतारी
मंदिरी विठ्ठल नाचे, गुणवंता पुढे हरी ||३||
संसारी अवतार ,
भजनी सांगी उद्धार
दीनानाथा दयावंता, कृपा करी लवकर ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
जगदंबे मां भवानी, नमितो मी तुझ्या चरणी ||धृ.||
तुच आदि माता अन् ब्रह्मपिता
ज्योतिबिंदु स्थिता व्यापिली समस्ता
तुच दाता अन् त्राता, उदे उदे अंबे माता ||१||
तुच सुख-करणी, पापपीडा-हरणी
तुच मोक्ष-वरणी आलो तुझ्या चरणीं
तुझा बाळ मी अज्ञानी, कृपा कर ग कल्याणी ||२||
व्याकुळले मन लागो तुझे ध्यान
दे ग भक्ति दान सुखाचे साधन
तुझे ठायीं माझे मन , आलो तुला मी शरण ||३||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
तुच माझ्या ध्यानीं, तुच माझ्या मनीं
त्रैलोक्याची राणी, काली माता ||धृ.||
तुच माझी माता, अन् तुच पिता
तुच माझी त्राता, काली माता ||१||
प्रसन्न हे मुख, देई मज सुख
पूर्णत्व ओळख, काली माता ||२||
विश्वाची चेतना, कर्माची प्रेरणा
पूर्ण सत्य जाना, काली माता ||३||
अर्पूनी हे भजन, आलो तुला शरण
दे ग तूं दर्शन, काली माता ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
जय काली महाराणी, नमितो मी तुझ्या चरणी ||धृ.||
काली स्मशान-वासिनी,
विराजे शव आसनी
खड्ग-मुण्ड- धारिनी, सर्वशत्रु - विनाशिनी ||१||
ललाटी चन्द्र - धारिनी,
मुक्तकेशा त्रिनयनी
लप लप – रक्तवर्णी, भव्यजिह्वा - प्रदर्शिनी ||२||
मुण्डमाला - विभुषीनी,
बालप्रेत - कुंडलकर्णी
हस्तमाला - मेखलिनी, रूपसुंदरी चिरतरूणी ||३||
कृष्णवर्णा तेजस्विनी,
प्रसन्ना अट्टहासिनी
चैतन्याsss चित्-रूपीणी, प्रकाशली अंतर्मनी ||४||
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
मी कोण आहे ? याचे उत्तर सामान्य आणि नास्तिक व्यक्तींसाठी अशक्य आहे, कारण ते या संसार-बंधनात, घमेंडी (अहंपणा) स्वभावात, आणि तसेच तृप्त सुखी जीवनांत स्वतःला विसरलेले असतात, त्यामुळे ते आपले सत्य स्वरूप समजूं शकत नाही.
अशा भौतिक सुखाधीन व्यक्तींसाठी, ते स्वतः म्हणजे त्यांचे नांव, उदाहरणार्थ राजेश. जर त्यांना कोणी विचारले किं तुम्ही कोण ?, तर ते राजेश असेच सांगतात. परंतु ते असत्य आहे, कारण राजेश हे नांव त्यांच्या शरिराचे आहे. म्हणजेच आपण म्हणजे आपले नांव व आपले शरीर या दोन्हीं भिन्न आहेत. तर आपण स्वतः कोण ? हा प्रश्न आपल्या साठी निरुत्तर ठरतो.
मी कोण आहे ? या प्रश्नाचे खरे आकलन कांहीं धार्मिक पुस्तकाव्दारे व तसेच धर्मात्मांच्या प्रवचनाव्दारे होऊ शकते. त्यासाठी सर्वात प्रथम अहंपणा हा दुर्गुण त्यागून ईश्वर आणि गुरु वर पूर्ण विश्वास ठेवून शरण-वृत्ती व धार्मिक प्रवृत्ती अवलंबन करणे आवश्यक आहे, तरच सत्य ज्ञान संपादन होऊ शकते. आत्मा, परमात्मा व ईश्वर यांचे आत्मज्ञान प्राप्त झाल्यावर, ध्यान-धारणा इत्यादि योग-साधने मुळे एकाग्रता प्राप्त होऊन, देह-जाणीव व कर्म-बंधन यातून मुक्ती मिळून, आपोआप सत्याचे दर्शन व ज्ञान प्राप्त होते.
याव्दारे आपण स्वतः कोण ?, आपले सत्य स्वरूप काय ?, जीवनाचे ध्येय कोणते ? याचे आपल्याला आकलन होते. आपण आध्यात्मिक आत्मज्ञान खालील पांच भागांत विभागून अभ्यास करू.
आध्यात्मिक शास्त्रानुसार जीवित शरीर हे सहा देहांचे बनलेले आहे, ते स्थूल देह, प्राण देह, मनो देह, कारण देह, महाकारण देह आणि आत्मा असे आहेत. स्थूल देह म्हणजे आपली पूर्ण शारीरिक इंद्रिये. आपल्या इंद्रियांची निर्मिती आणि कार्य हे आकाश, भूमी, पाणी, अग्नी, व वायु या पंच-महाभूतां पासून होते. आपले शरीर हे खालील सतरा १७ घटकांचे बनलेले आहे, यात ५ ज्ञानेंद्रिय, ५ कर्मेंद्रिय, ५ प्राण (वायु), १ बुद्धी आणि १ मन असे घटक असतात. प्राण देह हे स्थूल देह व मनो देह या दोन्ही देहांच्या क्रिया-कार्यासाठी लागणारी मुख्य चालनादायी शक्ति आहे. या जीवनावश्यक शक्तिला प्राण म्हणतात. हा प्राण-वायु पासून निर्मित होतो. प्राण-वायु पासून निर्मित होणारे प्राण, अपान, समान, उधान आणि व्यान या सर्व एकंदर पांच वायूंच्या संग्रहाला पंच-वायु म्हणतात. या पांच वायूंचे शरीरातील स्थान व कार्य अलग-अलग आहेत. मनो देह हा शरीरातील मेंदू व्दारे कार्य करतो. मनो देह ही आपल्या मनात येणारे भावना, संवेदना, उत्तेजना व ईच्छा यांच्या निर्मांण कार्यासाठी मनातील आसन आहे. कारण देह हा देखील शरीरातील मेंदू व्दारे कार्य करतो. कारण देह हा निर्णय किंवा तर्क करणे आणि उपाय व कारण शोधणे यांची क्षमता आहे. महाकारण देह हा वास्तविकता बाबत अज्ञानता आणि ईश्वरापासून भिन्नता (नास्तिकता) दर्शवितो. या देहाचे चार विभाग आहेत. मन, बुद्धी, स्मरण किंवा चित्त आणि अहंकार हे चारही विभाग शारीरिक-बुद्धीला आकलन होणारे जाणीवां पैकी आहेत. आत्मा हा महाकारण देहाच्या विविध भागांच्या पलिकडे अलग आनंदमय कोषामधें राहतो व हा परम ईश्वरीय तत्वाचा अंश आहे. आपल्या शरीरा सभोवती अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय आणि आनंदमय ही पंच-कोष (आवरण) असतात. त्यातील सर्वांत आंतील आनंदमय कोष हा जागरुकता दर्शवितो, आणि तो भेदाभेद व भावनांपासून मुक्ति देतो.
पातांजली तंत्र योगानुसार, मनुष्य शरीरांत मुख्य योगिक चक्र एकंदर सांत आहेत. ही चक्रे आपल्या लिंग-शरीरात असून ती डोळ्यांनी दिसत नाहीत. या चक्रांची जाणीव फक्त मनकेंद्रीकरण व ध्यान प्रक्रियेने होऊ शकते. मनुष्याच्या पाठीचा मणका (पृष्ठकणा) यांत इडा, पिंगला, आणि सुषुम्ना या तीन योगिक नाडी आहेत, या नाडी द्वारे जीवनावश्यक असलेली प्राण शक्ती वर वर सरकते. या तीन पैकी, सुषुम्ना नाडी ही वरिल योगिक चक्रांशी जोडलेली आहे. पहिले मूलाधार चक्र हे सर्वांत खालील आधार चक्र आहे, हे ४ लाल रंगाच्या पाकळ्या असलेल्या कमळाने संबोधितात. हे चक्र पाठीच्या माकडहाडाच्या कणाच्या खालील जागी असते. या मूलाधार चक्रात कुंडलिनी ही योगिक शक्ती असून ती काळ्या स्वयंभू लिंगा सभोवती सुप्त (निद्रीस्त) अवस्थेत साडे-तीन गुंडाळी मारलेल्या स्वरुपात असते. या मूलाधार चक्रात इडा, पीडा, व सुषुम्ना ह्या तीन मुख्य नाडी अलग-अलग असून त्यांचा ऊर्ध्वगामी (वरच्या बाजूला) सरकण्याचा प्रारंभ इथून होतो. दुसरे स्वाधिष्ठान चक्र हे जननेन्द्रिया जवळ असून हे पांढऱ्या रंगाची चंद्रकोर आंत असलेल्या ६ शेंदरी किंवा केशरी पाकळ्या असलेल्या कमळाने संबोधतात. तिसरे मणिपूर चक्र हे बेंबी जवळ असून हे अधोगामी दर्शविणारे त्रिकोण हे पिवळ्या रंगाच्या १० पाकळ्या असलेल्या कमळा समान असते. चवथे अनाहत चक्र हे हृदयात आहे म्हणून याला हृदय चक्र असेही म्हणतात. हे चक्र हिरव्या रंगाच्या १२ पाकळ्यांचे वर्तृळाकार कमळ असे संबोधतात. ह्या चक्रात दोन त्रिकोण छेदून बनलेले षटकोनी यंत्र आहे, हे यंत्र पुरुष शक्ती आणि स्त्री शक्ती यांचे मिलन दर्शविते. पाचवे विशुद्ध चक्र हे कंठा मध्ये आहे, म्हणून याला कंठ चक्र असेही त्याच्या स्थानानुसार म्हणतात. हे पांढऱ्या वर्तुळात रुपेरी चंद्रकोर असून तिच्या भोवती फिक्कट निळा रंगाच्या १६ पाकळ्या असे चित्रित करतात. सहावे आज्ञा चक्राला तीसरा नेत्र चक्र असे म्हणतात. हे दोन्ही भुवयांच्या मध्ये असून हे चक्र जांभळा किंवा निळा रंगाचे दोन पाकळ्यांचे कमळ रुपात असते. ह्या ठिकाणी आजूबाजूच्या दोन इड़ा आणि पिंगळा नाड्या संपून त्या दोन्ही मध्य नाड़ी सुषुम्ना मधे मिसळून जातात. त्यामुळे द्वैतपणा म्हणजे दोन प्रकारचे विचार (जसे हा आणि तो, पुरुष आणि स्त्री, चांगले आणि वाईट, पाप आणि पुण्य, उजेड आणि अंधार) हे संपतात. शेवटी जीव जागृती होऊन यामुळे अंतस्थ खरी चेतना किंवा चैतन्य जागृत होते. हा जीव हाच ॐ रूपातील आत्मा ध्यान-योग-साधनेव्दारे प्रकाश रूपात त्रिपुटीत दिसतो. दोन भुवयांच्या मधील ओम चे आज्ञा चक्रावरील ह्या स्थानाला भ्रिकुटी असे संबोधतात. आज्ञा चक्र आणि भ्रिकुटी (दोन भुवया) ह्यांच्या संयोगाला त्रिपुटी असे संबोधतात. या आत्म्याची पूजा करण्यासाठी, हिंदू लोग दोन भुवयांच्या मधील या केंद्रीय त्रिपुटी वर म्हणजेच कपाळावर तिलक (गंध , कुंकू) लावतात. असे तिलक लावल्याने मनोविज्ञान शास्त्रानुसार आपल्या आत्मविश्वासात बढोत्तरी होते, तसेच अनावश्यक उद्भवणाऱ्या मानसिक उत्तेजनांवर पुष्कळ प्रमाणात नियंत्रण मिळते. योगाभ्यासाच्या प्रगतीनुसार जागृत झालेली कुंडलिनी मूलाधार चक्रातून वर वर सहा चक्रातून सरकत डोक्याच्या उच्च कळसावर असलेल्या सातव्या सहस्त्रार चक्रात पोहचते, हे अनेक-रंगी सहस्त्र दल कमळ स्वरूपात असून या ठिकाणी कुंडलिनी शक्तीचे पुरुष शिव-शक्तीशी मिलन होते. या मिलनामुळे योग्याची चेतना फुलारते आणि योगीचे विलीनीकरण हे दिव्य इश्वरिय चेतनेमध्ये संपन्न होते आणि समाधी अवस्था प्राप्त होते. या अवस्थे मधें शारीरिक देहभान म्हणजे चेतना असून कर्माची मुक्तता होते.
आत्मा हा एक सर्वसामान्य शब्द असून तो मूलभूत अंतिम वस्तुस्थिती दर्शवितो. आत्मा शब्दाचे वर्गिकरण हे जीवात्मा आणि परमात्मा अशा दोन प्रकारात होवू शकते. जीवात्मा म्हणजे शरीरासह माझी व तुमची मूलभूत वस्तुस्थिती दर्शविणे म्हणजेच प्रकृती व आत्मा मिळून जीवात्मा होतो. परमात्मा म्हणजे सर्व आत्म्यांचा एकुलता एक असणारा परम आत्मा म्हणजेच परमेश्वर (देव) किंवा ब्रम्ह असा अर्थ होतो. आत्मा व परमात्मा ह्या दोघांना प्रतिपादन करणारे कोणतेही घटक (तत्व) नाहीत, त्यांना नाव, आकार, शरीर नाहीत, तसेच मन देखील नाहीत त्यामुळे हे विचार व विकार रहित असून अतिशय शुद्ध व पवित्र आहेत. ह्या दोघांचे व्यक्तीत्व आपल्या ज्ञान, अज्ञान व बुद्धी पलीकडील आहेत. आत्मा व परमात्मा म्हणजे सार्वभौमिक (सार्वत्रिक) दैविक तत्व असून ही दोघेही मूलभूत अंतिम सत्य आहेत. ३.१. आत्मा आत्मा म्हणजे देवाचा प्रकाश (चैतन्य), हा आत्मा प्रत्येक जिवंत प्राण्यांत जीवनाचे चैतन्य म्हणून उपलब्ध असतो. आत्मा हा परमात्म्याचा अंश आहे म्हणून आत्मा हा परमात्म्याच्या रुपात निसर्गात उपलब्ध आहे. जसे एखाद्या झाडाचे बी मध्ये त्या झाडाचे गुणधर्म असतात, तसेच आत्मामध्ये सुद्धा परमात्म्याचे सर्व गुणधर्म असतात. आत्मा म्हणजे स्वतःचे सत्य स्वरूप. आत्मा म्हणजे अनादि, शाश्वत, अनंत, अपरिवर्तनीय, अमर, अनामी, अरूपी, अविनाशी, सदा विद्यमान असे मुलभूत स्वतंत्र स्वरूप आहे ३.२. जीवात्मा जीवात्मा म्हणजे व्यक्तिगत जीव. जीवात्मा हा व्यक्तीमधील आत्म्याचे प्रतिबिंब आहे. भगवद्गीतेमध्ये (२.२३) श्रीकृष्णाने आत्म्याबद्दल असे सांगितले कि हे पराक्रमी धनुर्धारी अर्जुना, या तुच्छ जगतातील जिवंत लोक तसे पाहिल्यास निर्जिव लोक असून त्यांच्यात माझीच श्रेष्ठ चैतन्य शक्ती आहे. या भौतिक शरीरातील जीवाला जीवात्मा म्हणतात. ३.३. परमात्मा परमात्मा हा दैविक परम तत्व असून त्यालाच आपण देव, परम स्व-तत्व, सत्य, प्रेम, आनंद असे म्हणतो. परमात्मा म्हणजे सर्वात श्रेष्ठ परम आत्मा होय. जर शरीराचे स्व-तत्व आत्मा आहे, तर आत्माचे स्व-तत्व परमात्मा आहे, म्हणून परमात्मा हा आत्म्यांचा आत्मा आहे. म्हणजे परमात्मा रुपी आनंद-सागर सर्व जिवंत प्राणीमात्रेच्या आत्म्यामध्ये असतो.
जगातील सर्व संशोधक असे मान्य करितात कीं एका प्रचंड स्फोटानंतर हे संपूर्ण विश्व् अस्तित्वात आले आहे. या स्फोटापूर्वी, सर्व भौतिक शक्ती हे त्यांच्या मुक्त स्थितीत उपलब्ध होते. नंतर त्यांच्या अति जास्तीच्या निर्मिती मुळे ते सर्व संयुक्त स्थितीत एकत्र होऊन त्यांनी एक संग्रहित शक्तीगृह बनविले. नंतर जास्तीच्या निर्मित शक्ती ह्या शक्तीगृहांत जमा झाल्यामुळे या शक्तीग्रहाचा प्रचंड स्फोट घडला. याच स्फोटाला बिग-बॅन्ग म्हणतात या स्फोटामुळे अधिक क्षमतेच्या ऊर्जाशील (ओजस्वी) शक्ती शक्तीगृहाच्या बाहेर फेकल्या गेल्यात. या सर्व भौतिक शक्तींपैकी, आपण आपल्या क्षमते नुसार, फक्त दोन च शक्तींना ओळखुं शकतो. पहिली ध्वनी शक्ती कीं जी कान -इंद्रियां व्दारे ऐकतां येते, आणि दुसरी प्रकाश शक्ती कीं जी डोळे -इंद्रियां व्दारे पाहतां येते. म्हणून हिंदू धर्मात घुमणारे आवाज तरंग यांना खालिल प्रमाणे संबोधतात - ओssssssम किंवा ओम, आणि ॐ या प्रतिकात्मक रूपात दर्शवितात. दुसरे म्हणजे प्रकाशाला भौतिक किंवा नैसर्गिक रूपाचा निर्माता समझतात, म्हणून सुरवातीला स्फोटाच्या वेळी निर्माण झालेल्या शक्तियुक्त भव्य प्रकाशाच्या तेजाला देव, परमेश्वर, परब्रह्म, किंवा परमात्मा म्हणतात. या सर्व शक्त एकमेकांशी कार्यान्वित होऊन पांच भौतिक तत्त्वें निर्माण करतात . या तत्वांना एकत्रितपणे “पंच-महाभूत” म्हणतात. हि पांच तत्वे निसर्गाच्या विविध निर्मिती आणि कार्य करिता भाग घेतात. हिंदू खगोलशास्त्राच्या ज्ञानाप्रमाणे, ग्रहांचा आकार आणि ग्रहांमधील अंतर ह्या दोन्ही वायूंचे वातावरण आणि उष्णतामान आपल्या पृथ्वीवर जीवन वाढविण्यास पोषक आहेत. म्हणजेच आपले जीवन हे काही निश्चित खात्रीदायक गणितीय नियमांवर आधारित आहे आणि आपली सर्व कार्य हे त्या निर्मात्याच्या सूचना आणि आदेश या प्रमाणे आहेत . हा निर्माता जो आपले जीवन ठरवितो , त्याला निश्चितच भव्य शक्तीचा देव, परमेश्वर किंवा परमात्मा सम्बोधावे. आणि जसे आपण इथे आहोत, तसेच देव सुद्धा इथेच अस्तित्वात आहे. तो परमात्मा आपल्या सर्वांच्या वर आहे, आणि त्याची अति-सूक्ष्म सक्रिय कार्यक्षम छायाप्रतीक स्वरूप म्हणजे आत्मा होय.
तत्वज्ञानानुसार माझी ओळख व अस्तित्व काय ?, मी कोण आहे ? असे प्रश्न मनात उदभवतात. मी शरीर, मन, गुण,विचार, भावना किंवा इतर काही विशिष्ट या पैकी आहे असा विचार करतांना आपल्याला आपले स्व-तत्वाचे अतिसूक्ष्म स्वरूप त्याच्या मुलभूत ज्ञानासह समोर येते आणि शेवटी आपल्याला समजते कि आपण तत्व, गुण यापैकी काहीही नसून असा अनुभव येतो कि आपल्यातच राहणारे दैविक स्व-तत्वाचे मूलतत्व असून ते शाश्वत (अनादि अनंत), अमर्यादित (विस्तीर्ण) व अविकारी (अक्षय) असून त्याचे नाव सत्चिदानंद (सत-चित-आनंद) आहे.
• सत – सत्य
• चित – चैतन्य (चेतना, जाणीव, शुद्धी, देहभान)
• आनंद – परमानंद (धन्यता, कल्याण) म्हणून मी आनंदी, तृप्त, शुद्ध, मंगल, परम अशा चिदानन्दाचे सत्य स्वरूप आहे. म्हणून अध्यात्मिक दृष्टीने माझे नांव सत्य-स्वरुपातील आत्मा आहे आणि शुभ व कल्याणकारी सद्कार्याने चैतन्यमय ईश्वर आहे, मात्र व्यहवारिक दृष्टीने माझ्या शरिराचे नांव राजेश आहे आणि संसारिक-कर्म-बंधनयुक्त सामाजिक-कार्याने मानव आहे. ‘ “मी कोण आहे ?” या प्रश्नाचे उत्तर आता आपल्याला आकलन झाले, ते म्हणजे “मी आत्मा आहे”. मी आत्मा आहे |||. shreeram kakade bhaktigit